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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
स्वामीनारायण सम्प्रदाय से पधारे स्वामीजी ने जैन मुनियों की कठोर साधना वृत्ति की आन-बान और शान कहा कि जिनके पैरों में जूता नहीं, सिर पर बाना नहीं, बैंक में खाता नहीं, परिवार से नाता नहीं उसे कहते हैं, जैन मुनि। जैन मुनि कठिन साधना करते हैं, जैसा भोजन मिल जाए वैसा शुद्ध भोजन एक बार ही व्रत, संयम आदि को धारण करते हुए करते हैं ।
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सिखधर्म के ज्ञानी रमणदीप सिंह ने कहा कि परमात्मा एक है इसे समझकर सभी को साथ में रहना चाहिए परम उपकारी गुरु और परमेश्वर को सच्चे मन से याद करते हुए उनके द्वारा बताए प्रेम व सच्चाई के मार्ग पर चलकर इस नरभव को सफल बनाना चाहिए जो हमें चौरासी लाख योनियों में भ्रमण के पश्चात् मिला है।
ब्रह्माकुमारी राजयोगिनी तारा दीदी ने आचार्य गुरुदेव की कठिन तपस्चर्या को व्यक्ति, समाज व देश के लिए प्रेरणादायी बताया और कहा कि यह आदर्श गीता के 18वें अध्याय में बताए गए नष्टमोह की ओर ले जाता है। आचार्य भगवन् ने अपने संघस्थ अनेक तपस्वी मुनियों व आर्यिकाओं का जीवन तो सुधारा ही है, इसके साथ साथ गृहस्थों पर भी मैत्री व आत्मकल्याण का मार्ग बताकर बहुत बड़ा उपकार किया है तथा इस कठोर साधना के द्वारा, वैराग्य के द्वारा अपनी आत्मा के गुणों को प्रकट किया है, शरीर और आत्मा का भेद विज्ञान प्रकट किया है। आज व्यक्ति मंदिर में जाने से पूर्व चमड़े की बैल्ट आदि उतार कर तो जाता है किन्तु अहंकार व अभिमान रूपी चमड़े को, देहाभिमान को अन्दर जाने पर भी अपने से अलग नहीं कर पाता है यही दुख का मूल है। इससे बचने के लिए ज्ञान व शांति के सागर त्रिलोकीनाथ का चिन्तवन करो। गुरु और परमेश्वर की कृपा के बिना उद्धार नहीं है ।
वात्सल्य मूर्ति आचार्य गुरुवर श्री सुनीलसागरजी महाराज ने अपना उद्बोधन शुरु करते हुए कहा कि
क्षमा करे और क्षमा मांग लें, जीत हैं इसमें हार नहीं । क्षमा वीर का आभूषण है, कायर का श्रंगार नहीं । ।
क्षमा सबसे बड़ा धर्म है । अपने अपराध के लिए दूसरों से क्षमा मांगना तो ठीक है किन्तु गलती न होने पर भी दूसरों से क्षमा मांग लेना महानता है । इसी प्रकार दूसरों की गलतियों को हृदय से क्षमा कर देने पर मैत्री व प्रेम प्रकट होता है जो सही मायनों में विश्व मैत्री दिवस की प्रासंगिकता और गरिमा को बढ़ा देता है। हमारा गुरुर ही इस प्रक्रिया में आड़े आता है जो सांसारिक शांति को छिन्न-भिन्न कर देता है और अंतरंग की निर्मलता को भी समाप्त कर डालता है ।
महापुरुषों का जीवन क्षमा शांति और करुणा से भरा हुआ होता है। परमशक्तिशाली होते हुए भी श्रीराम ने अपनी गलती न होते हुए भी युद्ध में मरणासन्न रावण से क्षमा मांगी थी। महाभारत के केन्द्रबिन्दु योगेश्वर श्रीकृष्ण ने