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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार संघस्थ आर्यिका श्री सुस्वरमती माताजी ने अपनी ओजपूर्ण वाणी में कहा कि तप इस तरह से करो कि उससे मजबूरी का प्रकटीकरण नहीं अपितु आपकी सामथ्र्य का यथाशक्ति प्रकटीकरण हो । उन्होंने कुत्ते की दुम को सीधा करने के दृष्टांत के माध्यम से समझाया कि एक श्रेष्ठी श्रावक इस चेलेंज को स्वीकार कर जैन दर्शन की पद्धति को अपनाकर कुत्ते को निराहार रखकर सर्व प्रथम उस शक्ति के स्रोत पर रोक लगाता है जिससे उस टेड़ी दुम को पोषण मिलता है और फिर उस कुत्ते की दुम को सीधा करने में सफल हो जाता है। ठीक उसी प्रकार ज्ञानी तपस्वी साधक निराहारी रहकर, संयम को अपनाकर विकारों का शमन करने हेतु संवर करता है, कर्मों की निर्जरा करता है और मोक्षमहल में अपने कदम रखने में सफलता हांसिल करता है। पर्युषण श्रावकों को यह सुन्दर अवसर उपलब्ध कराता है आचार्यश्री कहते हैं कि तप की ताकत अद्भुत है तपस्वी, माता पिता और वात्सल्यमयी गुरुजनों का आशीर्वाद कभी निष्फल नहीं जाता। इसलिए हे भव्य जीवो! सच्चे मन से तप धर्म की आराधना करो, जरूरतमंदो की मदद करके जीभ पर संयम की मिठास पैदा करो तो शरीर में शुगर नहीं होगी। 1 44 22 आत्म कल्याण एवं समाज संतुलन का अद्भुत संगम : उत्तम त्याग धर्म बेकार का पदार्थ व व्यर्थ प्रवृत्तियों का त्याग तथा श्रेष्ठ वस्तुओं का दान ही उत्तम त्याग है। इसमें आत्म कल्याण के साथ सामाजिक सरोकार व सामाजिक संतुलन का भाव गर्भित है । इसमें उत्तम त्याग धर्म की सच्ची सार्थकता है। संग्रह करने वाला भले ही दुनियाँ की नजरों में श्रेष्ठी हो किन्तु परमात्मा प्रभु की दृष्टि में तो त्यागी ही सर्वश्रेष्ठ होता है जिसके पास ज्ञान का प्रत्याख्यान है अर्थात् वह जानता है कि कौनसी वस्तु त्यागने योग्य है और वह एक पल का भी बिलंब किए बिना उसका त्वरित त्याग कर देता है । तीर्थंकर आदि तपस्वी आत्माओं ने अपने धन वैभव का, छःखण्ड के राज का त्याग एक क्षण में ही कर दिया था। आचार्य भगवन् श्री सुनीलसागरजी महाराज कहते हैं कि त्यागी वह है जो सर्वोत्तम को धारण करता है, सम्यक्त्व का विवेक रखता है और व्यर्थ को भलीभांति जान-समझ कर उसे छोड़ते हुए उत्तम त्याग धर्म को धारण करता है। आचार्य गुरुदेव कहते हैं कि मजबूरी और दिखावे के लिए न तो त्याग करना चाहिए और न ही दान । दान रोते रोते कभी नहीं करना चाहिए । दान के स्वरुप के संबंध में बहुत ही सत्य लोकोक्ति है कि
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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