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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
कोई श्रावक अपनी पत्नी का योग्य रूप से समाधिमरण घर पर करा सकता है किन्तु आपने ऐसा कर दिखाया। तत्पश्चात् अपनी बहन के पास अपना सभी कुछ देकर और बच्चों के पालन की जिम्मेदारी छोड़ कुंथलगिरि पर केशलोंच कर आध्यात्मिक विकास के शिखर पर कदम रख दिया। कहते हैं कि उस समय बहुत जोर से दुंदभि बजी थी जो नीचे खड़े लोगों को सुनाई दी किन्तु जब वे उपर शिखर तक गए वहाँ कोई वाद्ययंत्र नहीं था । यह ऐसे भविष्य के स्वागत का शंखनाद था जो सोते हुए जगत को जगाने और महावीर की शिक्षाओं के प्रति विश्वास पैदा करने के लिए इस पथ पर अविरल बढने के लिए कृत संकल्प हो चुका था । गृहस्थ जीवन में आचार्य शांति सागरजी आहार चर्या के बाद अपने मजबूत कंधो पर बैठाकर नदी पार कराने वाले इस श्रावक की भव सागर तरने की भावना तरणतारण बनने के सशक्त साधक के रूप में पूरी हो गई। जीवन भर गुफा कंदराओं में कठोर साधना, 7 दिन उपवास और एक दिन आहार यहाँ तक कि 14 दिन के सुखद उपवास के साथ ऊदगांव कुंजवन में समाधिस्थ होकर इस नश्वर शरीर का निर्विकल्प रहकर त्याग कर दिया । गुरुदेव ने छोटे छोटे गांवों में भी विहार करते अनेक लोगों को वैर-क्लेश आदि से मुक्ति दिलाई और उन्हें सन्मार्ग में लगाया।
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आचार्यश्री ने कहा कि यह एक अच्छा संयोग है कि गणेश चतुर्थी के दिन मुनिकुंजर आदिसागरजी महाराज का जन्म दिन भी है। सभी को गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं देते हुए गुरुदेव ने कहा कि जिस तरह महावीर प्रभु की शांति मुद्रा से हम प्रेरणा लेते हैं उसी प्रकार हम गणेश की मूर्ति से अर्थात् उन्नत ललाट से बुद्धि व प्रज्ञा, लंबी नाक से परस्पर सम्मान, छोटी आंखे- दोषों को न देखना, बड़ा पेट- अर्थात् दूसरों के रहस्यों को पचा लेना, बड़े कान दूसरों को सुनना तथा छोटा सा वाहन चूहा भी यह संदेश देता है कि हमें कम से कम संसाधनों में रहते हुए अपनी जरूरतें पूरी करके संतुष्ट रहना चाहिए ।
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जो काम सुई से हो सकता है
उसके लिए तलवार उठाने की जरूरत नहीं
गुजरात की राजधानी गांधीनगर में चातुर्मास के दरम्यान प्रातःकालीन प्रवचन में मानव जीवन में व्यावहारिक रूप से अति उपयोगी मुद्दे पर परम पूज्य आचार्यश्री सुनीलसागरजी ने कहा कि जो काम सुई से हो सकता है उसके लिए तलवार उठाने की आवश्यकता नहीं है। सुई और कैंची दोनों एक ही लोहे से बनी हैं। सुई सीने का और जोड़ने का काम करती है जबकि कैंची काटने और तोड़ने का काम करती है। जो समाज को सुई के समान जोड़ने का काम करते हैं समाज उनको सिर आँखों पर बिठाता है और तोड़ने के काम में लगे