SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 12 अणुव्रत सदाचार और शाकाहार विश्व के पहले शिक्षक आदिब्रह्म आदिनाथ भगवान थे जिन्होंने अपनी दोनों सुपुत्रियों ब्राह्मी और सुन्दरी को लिपि व अंक विद्या का ज्ञान दिया तथा भरत आदि अपने पुत्रों को भी लोकोपयोगी ज्ञान से सुशोभित किया। जन समुदाय को भी अहिंसक रूप से जीवन निर्वाह के लिए असि–मसि-कृषि, वाणिज्य, शिल्प आदि का ज्ञान प्रदान किया। ___यदि कोई शिष्य गुरु शरण में समर्पित हो जाता है तो उसके जीवन में ऐसा परिवर्तन आ जाता है कि वह चारों ओर से निखर उठता है। आज यदि शिक्षक शिक्षा के अतिरिक्त बिन जरूरी प्रवृत्तियों से मुक्त कर लें तो शिक्षक की खोई हुई प्रतिष्ठा पुन: प्राप्त की जा सकती है। शिक्षक अपने जीवन में आदर्श जीवन पद्धति अपनाएं मदिरा, मांस आदि व्यसनों का त्याग करें, सदाचारी एवं समाजोपयोगी बने और ऐसे कार्यों से बचे जो हिंसा के कारण हैं। आचार्यश्री ने बताया कि कुछ लोग मरे हुए जानवर का मांस खाने में हिंसा नहीं मानते किन्तु उन्हें ज्ञात नहीं है कि कच्चे, पके और अधपके मांस के टुकड़ों में सतत उसी जाति के जीवों की उत्पत्ति होती रहती है। डिब्बे बंद आहार में भी कोई सुनिश्चितता नहीं होती। आज सचमुच देश में क्रांति की आवश्यकता है जो युवाओं को शाकाहार का वैज्ञानिक स्वरूप समझाकर भ्रम की स्थिति से उबार सके और अहिंसक, सदाचारी समाज की रचना में अपना योगदान सुनिश्चित कर सके। आज आर्यिका सूत्रमति माताजी ने अपने प्रवचन में समाधि प्राप्त मुनि तरूण सागर जी के संदर्भ में कुछ उपद्रवी तत्वों द्वारा उंगली उठाए जाने के समाचारों को जानकर क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि ये वही लोग हो सकते हैं जिन्हें धर्म का सही स्वरूप नहीं मालूम। वस्तुत: मुनिश्री ने आगमानुकूल संयम पालते हुए उत्कृष्ट समाधि मरण किया है। आचार्यश्री ने भी कहा कि किसी के संयम पर ऐसी अशोभनीय टिप्पणी कदापि उचित नहीं। लोग चांद के दाग देखने लग जाते हैं किन्तु उसकी रोशनी को भूल जाते है। उन्हें साधु की कमजोरी दूर से दिख जाती है किन्तु उनकी कठोर साधना नजर नहीं आती। ऐसे तत्वों की संवेदनहीन हरकतों पर अंकुश लगना चाहिए ताकि धर्म की विराधना न हो। अणुव्रतों का पालन एवं आसक्तिरहित जीवन राष्ट्र के लिए वरदान जैन धर्म में एक श्रावक और सही मायनों में एक सभ्य कहलाने वाले नागरिक को अपने जीवन में अणुव्रतों को यम नियम की भांति धारण करना जरूरी है। परम कृपालु आध्यात्म श्रेष्ठ, चर्याचक्रवर्ती 108 आचार्य श्री
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy