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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार 109 सभी का विकास है, सभी की सुरक्षा है, सभी का जीवन है, अभय है। जिस शांति समृद्धि के मार्ग की तलाश में विश्व पगलाया है वह भौतिकवादिता में नहीं अपितु अणुव्रती का मर्यादापूर्ण जीवन जीने में है। विकास वह है जो मनुष्य के मन में प्राणिमात्र के प्रति संवेदना विकसित कर सके। खुशी साधनों में नहीं साधना में है। परम पूज्य आचार्य वट्टकेरजी कहते हैं कि हे भव्य आत्माओ अपने मन से राग-द्वेष को खत्म करो, आत्मबंधन की सांकल को तोड़ दो और निज स्वरूप को प्राप्त हो जाओ। एक भी घड़ी संयम के बिना मत जाने दो। रहट की तरह चलने वाले इस जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त होने के लिए 12 व्रतों का अतिचार रहित पालन हेतु पुरुषार्थ करो और जीवन की गति इधर-उधर भटकाने के बजाय लक्ष्य की ओर उन्मुख करो। प्राकृत ज्ञानकेशरी आचार्य श्री सुनील सागरजी महाराज की 14 से अधिक प्राकृत कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें से कई एक कृतियां विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्राकृत भाषा के पाठ्यक्रम में सम्मलित हैं, प्राकृत भाषा पर इतना अधिकार रखने वाले तथा जनकल्याणी विषयों के साथ उसे जन जन तक ले जाने वाले परम कपाल आचार्य भगवन ने अपने उदबोधन में कहा कि यह संगोष्ठी निश्चित रूप से सफल हुई जिसमें राष्ट्रीय स्तर के 40 से भी अधिक विद्वानों ने प्राकृत भाषा के विविध आयामों पर बहुत पुरुषार्थयुक्त विवेचन प्रस्तुत किया। इसमें लीक से अलग हटकर कुछ नये प्रयोग भी रखे गए जो प्राकृत भाषा को विशाल फलक प्रदान करने में उसे जन जन की भाषा के रूप में पुनः प्रस्थापित करने में मील का पत्थर साबित होंगे। जैन आगम का अधिकांश प्रामाणिक साहित्य प्राकृत भाषा में ही प्राप्त है इसलिए इस भाषा का ज्ञान हर साधक व जिज्ञासु को होना आवश्यक है ताकि वह कृति के मूल स्वरूप को उसी रूप में समझ सके। निःसंदेह प्राकृत एक प्राचीन भाषा है जिसमें जैन आगम के महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना तो हुई ही है इसके अलावा अन्य धर्म व संस्कृति ग्रंथो का लेखन भी प्राकृत भाषा में हुआ है। प्राकृत भाषा में प्रकृति के समान ही स्वाभाविकता का प्रकटीकरण होता है। आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी के ग्रंथों समयसार, प्रवचनसार, अष्टपाहुड़ आदि प्राकृत भाषा में रचे गए जिनमें आत्मस्वरूप का बहुत ही सुन्दर विवेचन मिलता है। प्राचीन समय के जैनेतर नाटकों में भी प्राकृत भाषा का अस्तित्व था जो कालान्तर में संस्कृत में रूपान्तरित हुआ। संस्कृत भाषा के प्रभाव के कारण तत्कालीन समय में प्राकृत भाषा के व्याकरण को संस्कृत के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। उल्लेखनीय है कि आचार्य सुनील सागरजी की कृति प्राकृत व्याकरण बोध कृति हिन्दी से प्राकृत सीखने की एक प्रभावशाली रचना है जो हर पाठक को प्राकृत सीखने में सहज लगती है। आधुनिक समय में प्राकृत भाषा को संस्कृत की छाया भले कही जाती हो लेकिन इससे प्राकृत भाषा की प्राचीनता को चुनौती नहीं दी जा सकती।
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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