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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
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का दामन पकड़ा, क्रांतिदूत बनकर हिंसा का पुरजोर विरोध किया और लोंगो को समझाया कि अहिंसा ही परम धर्म है। बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि यदि महावीर नहीं होते तो देश में अहिंसा का दबदबा नहीं होता। हमें मन, वचन, काय से हिंसादिक प्रवृत्तियों से दूर रहना चाहिए।
किसी भी रूप में मांस आदि हिंसादि पदार्थों दान नहीं किया जा सकता। वास्तव में दान तो 4 ही हैं- औषध दान, शास्त्र दान, अभय दान और आहार दान जो विविध प्रकार के पात्र, जरूरमंद प्राणियों की मदद करता है और उन्हें सुख की अनुभूति कराता है। गृहस्थ धर्म निभाते हुए एकेन्द्रिय स्थावर जीवों की मर्यादित प्रमाण में विराधना तो क्षम्य हो सकती है किन्तु पंचेन्द्रिय जीवों का घात किसी भी परिस्थिति में, किसी भी प्रकार के कुतर्क के नाम पर, किसी भी परंपरा के नाम पर नहीं होना चाहिए। राष्ट्रवासियों को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि गांधीजी के वैष्णवजन का संदेश तभी प्रासंगिक बन सकता है जब हम सभी विवेक पूर्वक हिंसा का त्याग करें, सभी जीवों से प्रेम करें और समझें कि सभी हमारे समान ही प्राण है, सभी हमारे समान ही सुख-दुख का अनुभव करते हैं। प्रवचन के आरंभ में श्री आर्षमती माताजी ने कहा कि पर्युषण पर्व बहुत ही उत्साह के साथ सम्पन्न हो गए लेकिन संयम की पालना के पथ में यह उत्साह कम नहीं पड़ना चाहिए अपितु दिन दूना रात चौगुना बढ़ते रहना चाहिए। उन्होंने अकलंक-निकलंक के कथानक के माध्यम से धर्म के प्रति श्रद्धा व समर्पण की प्रेरणा दी।
50 सल्लेखना-समाधिमरण ही अहिंसक एवं श्रेष्ठ
क्षुल्लक श्री सार्थकसागरजी की संलेखना समाधि पर विशेष
सौ जन्मों का पुण्य होता है, तब मानव जन्म मिलता है। हजार जन्मों का पुण्य होता है, तब भारत जैसे देश में जन्म मिलता है।। लाखों जन्मों का पुण्य होता है, तब जैन धर्म एवं उत्तम कुल मिलता है।
और जब भवों भवों का पुण्य होता है, तब समाधिमरण मिलता है।
28 अक्टूबर, 2018 गांधीनगर जन समुदाय और जैन समाज पूज्य गुरुवर की समाधिमरण चिकित्सा का अदभुत नजारा महसूस कर रहा था जब क्षुल्लक श्री सार्थक सागरजी का पार्थव शरीर आचार्यश्री की पावन निश्रा तथा संघ सानिध्य में साबरमती नदी के किनारे आगम सम्मत पूर्ण विधि विधान के साथ पंचतत्त्व में विलीन हो रहा था। उकि.मी. की लंबी इस पदयात्रा में गांधीनगर के प्रथम पुरुष मेयर श्री प्रवीण भाई पटेल सम्पूर्ण विधि पूर्ण होने