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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
विशाखनंदी का जीव अश्वग्रीव नामक पराक्रमी राजा बनता है । अश्वग्रीव और त्रिपृष्ट राजा के बीच दो वेश्याओं पर अधिकार को लेकर उनमें ठन जाती है, अहंकार आड़े आ जाता है, युद्ध छिड़ता है और अंत में इसमें अश्वग्रीव मारा भी जाता है। लेकिन अंहकार के मद में चूर त्रिपृष्ट नारायण और विजय बलभद्र अपने अनुचरों के साथ तरह तरह का दुर्व्यवहार करते हैं और नारायण बलभद्र होते हुए भी पतन को प्राप्त होते हैं ।
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वात्सल्यपूर्ण संबोधन तथा सम्यक् सावधानी धारण करने से पशु पर्याय में भी किस प्रकार मुक्ति का मार्ग मिल जाता है यह भगवान महावीर के अंतिम भव के पूर्व की कथा से सीख सकते हैं। आकाशगामी मुनिराज ने जब एक सिंह को हिरण का वध करते हुए देखा और अवधिज्ञान से जाना कि यह तो तीर्थंकर महावीर का जीव है, तब वे उसे संबोधने हेतु रुके और कहा कि तुम तो भव्य आत्मा हो फिर हिंसा का निकृष्ट काम क्यों कर रहे हो? कहते हैं कि जब होनहार अच्छी होती है तो कोई भी भाषा समझ में आ जाती है। अपने पूर्वभव की दुर्दशा को जानकर उस सिंह की आँखों में आँसू आ जाते हैं, वह निर्मल परिणामों से अणुव्रतों को धारण कर लेता है । अब जंगली प्राणी बिना किसी भ के उसके आसपास आते रहते हैं और उसकी दुष्ट प्राणियों से रक्षा भी करते हैं। सिंह की इस पर्याय में मात्र 18 दिवस की कठोर साधना करके वह अपना भव सुधार लेता है।
बंधुओ ! वह सिंह सावधान हो गया इसलिए देव पर्याय में जाकर भी वह भोगों में लिप्त होने की बजाय भगवान के पंचकल्याणक में आने-जाने लगा आत्म-चिंतन में रत रहने लगा। कहते है कि अच्छे क्षण पलभर में व्यतीत हो जाते हैं जबकि बुरा पल का समय कठिनता से कटता है । स्वर्ग से चयकर वह जीव प्रियमित्र चक्रवर्ती के रूप में जन्म लेता है, एक दम निराभिमानी एवं अपने वैभव से अनासक्त। क्षेमंकर मुनि से दीक्षा लेकर भव सुधारने की मोक्षयात्रा का पथिक बन जाता है। परमहितैषी आचार्य भगवन् कहते हैं कि भक्ति के साथ वैराग्य और तपस्या मनुष्य भव में ही संभव देव लोक में नहीं । तपस्या करके देव तो बन सकते हैं लेकिन मोक्ष जाने के लिए मनुष्य भव सम्यक् तप का पुरुषार्थ करना ही पड़ता है। हम भगवान महावीर के चरित्र उनके पूर्वभव के वृतांतो से सीख लेकर अपने परिणामों की विशुद्धि को बढ़ायें, आत्म स्वरूप को पहचानें। अहिंसा के पुजारी के निर्वाण महोत्सव पर हिंसा के कारण, प्रदूषण के जनक तथा आरोग्य के दुश्मन इन पटाखों को न चलाएं इस पैसे का सदुपयोग गरीबों व जरूरतमंदो की मदद करने तथा दूसरों को खुशी बाँटने में करें। इन पटाखों का धुँआ तो श्वास वाले मरीज के लिए कई बार मृत्यु का सामान साबित हो जाता हैं इसलिए इनसे बचें तथा दूसरों को भी बचायें तथा सुयोग्य कार्यों से दीपावली जैसे पावन पर्व की गरिमा को दूषित न होने दें।