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Verses 162, 163
निर्धनत्वं धनं येषां मृत्युरेव हि जीवितम् । किं करोति विधिस्तेषां सतां ज्ञानैकचक्षुषाम् ॥१६२॥
अर्थ – जिन साधुओं के निर्धनता (उत्तम आकिंचन्य) ही धन है तथा मृत्यु ही जिनका जीवन है उन ज्ञानरूप अद्वितीय नेत्र को धारण करने वाले साधुओं का भला कर्म क्या अनिष्ट कर सकता है? अर्थात् कुछ भी नहीं कर सकता है।
What harm can karma do to the ascetics endowed with the knowledge-eye, whose wealth is their nonpossessiveness and whose life is their death?
जीविताशा धनाशा च येषां तेषां विधिर्विधिः । किं करोति विधिस्तेषां येषामाशा निराशता ॥१६३॥
अर्थ - जिन जीवों के जीवन की अभिलाषा और धन की अभिलाषा रहती है उन्हीं जीवों का कर्म कुछ अनिष्ट कर सकता है - वह उनके प्रिय जीवन और धन को नष्ट करके हानि कर सकता है। परन्तु जिन जीवों की आशा - जीने की इच्छा और विषयतृष्णा - नि:शेषतया नष्ट हो चुकी है उनका वह कर्म भला क्या अनिष्ट कर सकता है? कुछ भी नहीं। यदि वह उनके जीवन और धन का अपहरण करता है तो वह उनके अभीष्ट को ही सम्पादित करता है।
Karma can do harm only to those who desire life and wealth; it can harm them by destroying their cherished
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