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प्रवचनसार
Lord Jina has expounded that the body, the mind and the speech are the nature of the substance of matter (pudgala). Further, the substance of matter (pudgala) certainly is the molecular union of the infinitesimal atoms of matter.
Explanatory Note: These three - the body, the mind and the speech - are certainly of the nature of the substance of matter (pudgala). The mode (paryāya), as a result of the union of atoms (paramāņu), is the unnatural mode (paryāya) of the substance of matter (pudgala). Although in modes (paryāya) that manifest in form of the body, the mind and the speech, there is the union of different atoms (paramāņu), these appear to be one due to fusion that takes place owing to their qualities of greasiness (snigdha) or roughness (ruksa).
णाहं पोग्गलमइओ ण ते मया पोग्गला कया पिंडं। तम्हा हि ण देहोऽहं कत्ता वा तस्स देहस्स ॥2-700
नाहं पुद्गलमयो न ते मया पुद्गलाः कृताः पिण्डम् । तस्माद्धि न देहोऽहं कर्ता वा तस्य देहस्य 2-70॥
सामान्यार्थ - [अहं] मैं शुद्ध चैतन्यमात्र वस्तु [ पुद्गलमयः न] अचेतन पुद्गल-द्रव्य-रूप नहीं हूँ। [ ते पुद्गलाः ] वे सूक्ष्म-परमाणु-रूप पुद्गल [ मया ] मेरे द्वारा [पिण्डं कृताः न ] स्कंध-रूप नहीं किये गये हैं, अपनी शक्ति से ही पिण्ड-रूप हो जाते हैं। [तस्मात् ] इस कारण [हि ] निश्चय से [अहं] ज्ञान-स्वरूप मैं [ देहः न ] पुद्गलविकारमयी शरीर नहीं हूँ - अमूर्त चैतन्य हूँ [वा ] अथवा [ तस्य देहस्य ] उस पुद्गलमयी देह का [कर्ता 'न'] कर्ता नहीं हूँ।
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