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________________ मायामृषावाद मिथ्यादर्शन शल्य कपट सहित झूठ बोलना। झूठी मान्यता रूप काँटा अर्थात् देव, गुरु, धर्म की विपरीत श्रद्धा। इच्छामिखमासमणो का पाठ इच्छामि चाहता हूँ। खमासमणो हे क्षमाश्रमण! वंदिउं वन्दना करना। जावणिज्जाए शक्ति के अनुसार। निसीहियाए शरीर को पाप क्रिया से हटा करके। अणुजाणह मे आप मुझे आज्ञा दीजिए। मिउग्गहं मितावग्रह (परिमित यानी चारों ओर साढ़े तीन हाथ भूमि) में प्रवेश करने की आज्ञा पाकर शिष्य बोले कि हे गुरुदेव! मैं । निसीहि समस्त सावध व्यापारों को मन, वचन, काया से रोक कर। अहो कायं आपकी अधोकाया (चरणों) को। काय-संफासं मेरी काया (हाथ और मस्तक) से स्पर्श करता हूँ (छूता हूँ)। खमणिज्जो भे किलामो इससे आपको मेरे द्वारा अगर कष्ट पहुँचा हो तो उस कष्ट प्रदाता को अर्थात् मुझे क्षमा करें। अप्पकिलंताणं हे गुरु महाराज! अल्प ग्लान अवस्था में रहकर। बहुसुभेणं बहुत शुभ क्रियाओं से सुख शान्ति पूर्वक । {63} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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