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तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेमि, वंदामि, नमसामि, सक्कारेमि, सम्माणेमि, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेइयं, पज्जुवासामि, मत्थएण वंदामि ।। आप मांगलिक हो, आप उत्तम हो, हे स्वामिन् ! हे नाथ! आपका इस भव, पर भव, भव भव में सदा काल शरण होवे।
दोहा सागर में पाणी घणों, गागर में न समाय । पाँचों पदों में गुण घणा, माँ सूकह्यो न जाय ।। इसके बाद सीधे बैठ कर अग्रलिखित पाठ बोलें।
43. अनन्त चौबीसी का पाठ अनन्त चौबीसी जिन नD, सिद्ध अनन्ता क्रोड़। केवल ज्ञानी गणधरा, वन्दूँ बे कर जोड़।।1।। दोय क्रोड़ केवल धरा, विहरमान जिन बीस । सहस्र युगल क्रोड़ी नमूं, साधु नमूं निश दीस ।।2।। धन साधु धन साध्वी, धन धन है जिन-धर्म । ये सुमर्या पातक झरे, टूटे आठों कर्म ।।3।। अरिहन्त सिद्ध समरूँ सदा. आचारज उपाध्याय। साधु सकल के चरण को, वन्दूंशीश नमाय ।।4।। अंगुष्ठे अमृत बसे, लब्धि तणा भण्डार । श्री गुरु गौतम सुमरिये, वांछित फल दातार ।। 5 ।। इसके बाद खड़े होकर अग्रलिखित पाठ बोलें।
{39) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र