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संतोष, परदार' विवर्जन रूप मैथुन विरमण व्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउंइत्तरियपरिग्गहिया-गमणे, अपरिग्गहिया-गमणे', अनंगकीडा, परविवाह-करणे, कामभोगातिव्वाभिलासे,
जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।। 5. पाँचवाँ अणुव्रत-थूलाओ परिग्गहाओ वेरमणं, खेत्त-वत्थु
का यथा परिमाण, हिरण्ण-सुवण्ण का यथा परिमाण, धण-धण्ण का यथा परिमाण, दुप्पय-चउप्पय का यथा परिमाण, कुविय का यथा परिमाण एवं जो यथा परिमाण किया है उसके उपरान्त अपना करके परिग्रह रखने का पच्चक्खाण जावज्जीवाए एगविहं तिविहेणं न करेमि, मणसा, वयसा, कायसा एवं पाँचवाँ स्थूल परिग्रह विरमण व्रत के पंच-अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं-खेत्तवत्थुप्पमाणाइक्कमे, हिरण्ण-सुवण्णप्पमाणाइक्कमे, धणधण्णप्पमाणाइक्कमे, दुप्पय-चउप्पयप्पमाणाइक्कमे, कुवियप्पमाणाइक्कमे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। छट्टा दिशिव्रत-उबृदिसी का यथा परिमाण, अहोदिसी का यथा परिमाण, तिरियदिसी का यथा परिमाण एवं जो यथा परिमाण किया है उसके उपरान्त स्वेच्छा काया से
1. स्त्री को 'स्वदार' के स्थान पर स्वपति' तथा 'परदार' की जगह परपति' बोलना चाहिए। 2. स्त्री को 'इत्तरियपरिग्गहिया-गमणे' के स्थान पर 'इत्तरियपरिग्गहिय-गमणे' तथा 'अपरिग्गहिया-गमणे' के स्थान पर 'अपरिग्गहिय-गमणे' बोलना चाहिए।
{24) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र