________________ विनय-समर्पणता आवश्यक है। बायाँ घुटना विनय का प्रतीक होने से व्रतों में लगे हुए अतिचारों की आलोचना के समय बायाँ घुटना खड़ा करके बैठते हैं, अथवा खड़े होते हैं। श्रावक सूत्र में व्रत-धारण रूप प्रतिज्ञा की जाती है। प्रतिज्ञा-संकल्प में वीरता की आवश्यकता है। दायाँ घुटना वीरता का प्रतीक होने से इस समय में दायाँ घुटना खड़ा करके व्रतादि के पाठ बोले जाते हैं। प्र. 92. 'करेमि भंते' के पाठ को प्रतिक्रमण करते समय पुन: पुन: क्यों बोला जाता है? उत्तर समभाव की स्मृति बार-बार बनी रहे, प्रतिक्रमण करते समय कोई सावद्य प्रवृत्ति न हो, राग-द्वेषादि विषम भाव नहीं आये, इसके लिए प्रतिक्रमण में करेमि भंते का पाठ पहले, चौथे व पाँचवें आवश्यक में कुल तीन बार बोला जाता है। प्र. 93. कायोत्सर्ग आवश्यक क्यों है? उत्तर अविवेक व असावधानी से लगे अतिचारों से ज्ञानादि गुणों में जो मलिनता आती है, उसे निकालने के लिए, देह-सुख की ममता छोड़कर कायोत्सर्ग करना आवश्यक है। इससे हमारे आत्मिक गुण शुद्ध-निर्मल बनते हैं। प्र. 94. आवश्यक सूत्र के छह आवश्यकों के (भेदों के) क्रम की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। उत्तर आलोचना प्रारम्भ करने के पूर्व आत्मा में समभाव की प्राप्ति होना आवश्यक है, अत: सावध योग के त्याग रूप पहला सामायिक आवश्यक बताया गया है। सावद्य योगों से विरति {129) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र