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________________ प्र. 75. उत्तर प्रकार हैं-अशन, पान, खादिम, स्वादिम, वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण, चौकी, पट्टा, पौषधशाला (घर), संस्तारक, औषध और भेषज। इनमें अशन से रजोहरण तक की वस्तुएँ अप्रतिहारी तथा चौकी से भेषज तक की वस्तुएँ प्रतिहारी कहलाती हैं। जो लेने के बाद वापस न लौटा सके, वे अप्रतिहारी तथा जो वापस लौटा सके, वे वस्तुएँ प्रतिहारी कहलाती हैं। अतिथि संविभाग व्रत का क्या स्वरूप है? जिनके आने की कोई तिथि या समय नियत नहीं हैं, ऐसे पंच महाव्रतधारी निर्ग्रन्थ श्रमणों को उनके कल्प के अनुसार चौदह प्रकार की वस्तुएँ नि:स्वार्थ भाव से आत्म-कल्याण की भावना से देना तथा दान का संयोग न मिलने पर भी सदा दान देने की भावना रखना, अतिथि संविभाग व्रत है। बारह व्रतों में कितने विरमण व्रत व कितने अन्य व्रत हैं ? कारण सहित स्पष्ट कीजिए? बारह व्रतों में पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवाँ व आठवाँ व्रत विरमण व्रत कहलाते हैं, क्योंकि इनमें हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह व अनर्थदण्ड का क्रमश: त्याग किया जाता है। छठा व सातवाँ व्रत परिमाण व्रत कहलाते हैं, क्योंकि इनमें दिशाओं एवं खाने-पीने की मर्यादा की जाती है। सामान्यत: श्रावक पूर्ण त्याग नहीं कर पाता, वह मर्यादा ही करता है, इसलिये उन्हें परिमाण व्रत कहा है। नवमाँ, दसवाँ, ग्यारहवाँ व बारहवाँ व्रत शिक्षाव्रत कहलाते हैं, क्योंकि इनमें अणुव्रतों-गुणव्रतों के पालन का अभ्यास किया जाता है। प्र. 76. उत्तर (123) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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