SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्र. 35. उत्तर प्र. 36. उत्तर प्र. 37. उत्तर प्र. 38. उत्तर प्र. 39. उत्तर निदान शल्य किसे कहते हैं ? धर्माचरण के द्वारा सांसारिक फल की कामना करना, भोगों की लालसा रखना अर्थात् धर्मकरणी का फल भोगों के रूप में प्राप्त करने अपने जप-तप-संयम को दाँव पर लगा देना 'निदान शल्य' कहलाता है। संज्ञा किसे कहते हैं ? कर्मोदय की प्रबलता से होने वाली अभिलाषा, इच्छा 'संज्ञा' कहलाती है। आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा व परिग्रह संज्ञा के रूप में ये चार प्रकार की होती है। विकथा किसे कहते हैं ? संयम - जीवन को दूषित करने वाली कथा को 'विकथा' कहते । हैं स्त्री कथा, भक्त (भोजन) कथा, देश कथा और राज कथा के भेद से विकथा चार प्रकार की होती है। चारित्र किसे कहते हैं ? चारित्र का अर्थ है- व्रत का पालन करना । आत्मा में रमण करना। जिसके द्वारा आत्मा के साथ होने वाले कर्म का आव एवं बंध रुके एवं पूर्व कर्म निर्जरित हों, उसे चारित्र कहते हैं अथवा अठारह पापों का यावज्जीवन तीन करण-तीन योग से प्रत्याख्यान करना भी 'चारित्र' कहलाता है। जीव का जन्म मरण किस अपेक्षा से माना गया है ? प्राणों के संयोग से होने वाले नये भव की अपेक्षा से जन्म माना जाता है और प्राणों के वियोग से होने वाले पुराने भव की समाप्ति की अपेक्षा से मरण माना जाता है। {111} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy