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Niyamasāra
नियमसार
निज परमात्मा की भक्ति का स्वरूप - The devotion to the 'Self' - मोक्खपहे अप्पाणं ठविऊण य कुणदि णिव्वुदी भत्ती । तेण दु जीवो पावइ असहायगुणं णियप्पाणं ॥१३६॥
मोक्षमार्ग में अपने आत्मा को सम्यक् प्रकार से स्थापित कर जो निर्वृति (निर्वाण) की भक्ति करता है, उससे जीव असहाय (स्वापेक्ष) गुणों से युक्त निज आत्मा को प्राप्त करता है।
The soul (jīva) which, after setting in on the path to liberation, has devotion to liberation (nirvāņa) – nirvịtibhakti – attains the 'Self that is endowed with the independent (self-dependent) qualities (guna).
EXPLANATORY NOTE
Ācārya Kundakunda’s Pravacanasāra: एवं जिणा जिणिंदा सिद्धा मग्गं समुट्ठिदा समणा । जादा णमोत्थु तेसिं तस्स य णिव्वाणमग्गस्स ॥२-१०७॥
इस पूर्वोक्त प्रकार से सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रमयी शुद्धात्म-प्रवृत्तिरूप मोक्षमार्ग के प्रति उद्यमी होकर प्राप्त हुए जो उसी भव से मोक्ष जाने वाले सामान्य चरमशरीरी जीव, अर्हन्त पद के धारक तीर्थंकर और एक, दो पर्याय धारण कर मोक्ष जाने वाले ऐसे मोक्षाभिलाषी मुनि हैं वे मोक्ष में सिद्ध अवस्था को प्राप्त हुए हैं उन सबको तथा शुद्धात्मा की प्रवृत्तिमयी अनुभव-रूप मोक्षमार्ग को द्रव्य-भावरूप नमस्कार होवे।
My salutation to the Omniscient Lords (the kevali), the Fordmakers (the Tīrthankara), and the Most Worthy Ascetics (śramaņa) treading the aforementioned path that leads to the
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