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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० ] दिगम्बर जैन। चित्त हो सो पुरुष तिर्यच नहीं होय नारकी नहीं होय अर जो धर्मव्यानसहित अनशनव्रत धारण करके मेरै सो तो स्वर्गलोकमें इंद्र होय तथा महद्धिक देव होय अन्य पर्याय नहीं पावै ऐसा नियम है । भावार्थ-यो उत्तम मरणको अवसर पाय करिक आराधनासहित मरणमैं यत्न करो अर मरण आवते भयभीत होय परिग्रहमैं ममत्व धारि आत परिणामनिसों मरणकरि कुगतिमैं मत जावो । यो अवसर अनंतभवनिमें नहीं मिलेगा अर मरण छोड़ेगा तातें सावधान होय धर्मध्यानसहित धैर्य धारणकरि देहका त्याग करो ॥ १५ ॥ तप्तस्य तपसश्चापि पालितस्य व्रतस्य च । पठितस्य श्रुतस्यापि फलं मृत्युः समाधिना ॥१६॥ अर्थ,--तपका संताप भोगनेका अर व्रतनिके पालनेका अर श्रुतके पढ़नेका फल तो समाधि जो अपने आत्माकी सावधानी सहित मरण करना है। भावार्थ,--हे आत्मन् ! जो तुम इतने काल इंद्रियनिके विषयनिमैं वांछारहित होय अनशनादि तप किया है मो अनंतकालमैं आहारादिकनिका त्यागसहित संयमसहित देहकी ममतारहित समाधिमरणके अर्थि किया है अर जो अहिंसा सत्य अचौर्य ब्रह्मचर्य परिग्रहत्यागादि व्रत धारण किये हैं सो हु समस्त देहादिक परिग्रहमैं ममताका त्याग करि समस्त मनवचनकायतें आरंभादिक त्यागकरि समस्त शत्रु मित्रनिमैं वैर राग छोड़करि उपसर्गमैं धीरता धारणकरि अपना एक For Private and Personal Use Only
SR No.034246
Book TitleSamadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchand
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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