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दिगम्बर जैन । यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी । तौ तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव बारी॥४४॥ अभिनंदन मुनि आदि पाँचसे, घानी पेलि शु मारे। तो भी श्रीमुनि समता धारी, पूरब कर्म बिचारे ॥ यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव बारी॥ ४५ ॥ चाणक मुनि गोघरके माहीं, मूंद अगिनिपर जालो। श्रीगुरु उर समभाव धारके, अपनो रुप सम्हालो ।। यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव बारी॥४६ ।। सात शतक मुनिवर ने पायो, हथनापुरमें जानो।। वलि ब्राह्मणकृत घोर उपद्रव, सो मुनिवर नहिं मानो ॥ यह उपसर्ग सहो धर थिरता, आराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥४७॥ लोहमयी आभूषण गढ़के, ताले कर पहराये । पाँचो पाण्डव मुनिके तनमें, तौ भी नाहिं चिगाये ॥ यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥४८॥ और अनेक भये इस जगमें, समता रसके स्वादी । वे ही हमको हो सुखदाता, हर हैं देव प्रमादी ॥
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