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________________ (११) नय विषय शंका- द्रव्यास्तिक नयके मतसे सर्वं वस्तु सास्वती है और पर्यायास्तिक नयके मत से सर्व वस्तु असास्वती है। यह एक वस्तु विरुद्ध धर्म क्यो होना चाहिये । तथा सिद्धसेन. दिवाकर तीन नयकों द्रव्यास्ति और प्यार नयकों पर्यायास्तिक मानते है और जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण, च्यार नय द्रव्यास्तिक और तीन नय पर्यायस्तिक माने है यह शंका= समाधान - नयका मानणा ठीक है क्युकि वस्तुमें अनेक धर्म है वह ज्ञान नय. द्वारा हि होता है। नयका मुख्य दो भेद है (१) द्रव्यास्तिक (२) पर्यायास्तिक, द्रव्यास्तिक नय द्रव्यको ग्रहणकर वस्तुकों सास्वती मानते है कारण कि द्रव्यका तीन काहमें नाश नहीं होता है। और पर्यायास्तिक नय वस्तुकी पर्यायकों ग्रहन करते है और पर्यायका धर्म ही पलटन है वास्ते असास्वत माना है। इसमें कोई प्रकारका बिरुद्ध नहीं है। तथा सिद्धसेन दिवाकर रूजो सुत्र नयकों पर्यायास्तिक मानते है क्यू कि चोथी नय वर्तमान परिणामग्रही हैं और जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण चोथी नवकों द्रव्यास्तिक मानते हैं वह शुद्धोपयोग रहित होनासे वास्ते इसमें कोई तरेहका तफावत नहीं है। (१२) नियम विषय शंका | नियम (अभिग्रह) जैसे सर्व व्रतरूप सामायिक अर्थात् सर्वथा सावद्य योगोंका प्रत्याख्यान कर लेनेपर भी पौरसी आदिके पञ्चखाण क्यो कीया जाता है। समाधान - सर्व सावध योगोका प्रत्यख्यान करने से जीवोंक संबंर गुणकि प्राप्ती होती है परन्तु प्रत्यख्यान तो इच्छा का निरूद्ध करना तथा प्रमाद नाशक और अप्रमाद वृद्धक वृती कर्म
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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