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________________ समाचारीमें दोय चैत्यवन्दन और अनेक काउत्सर्ग करते है। नब दुसरे आचार्य उन्होंसे कुच्छ न्यूनाधिक करत है इसीसे, शंका होती है कि जब दोनों प्राचार्य पुरुष परम्परा कहते है तो क्या तीर्थकरोंके शासनमें भि एसी भिन्न भिन्न समाचारीयों थी। ___समाधांन-सब आचार्योंकि समाचारी निनाज्ञा विरुद्ध नही है इसी माफीक सब समाचारी जिनाज्ञा संयुक्त मि नही है और तीर्थकरों के शासन में एसे भिन्न भिन्न समाचारीयों भी नहीं थी। प्रश्न यह रहा कि कोनसी समाचारीको सत्य मानना ? जो समाचारी आगमप्रमाणसे अबाधित है । तथा देशकालसे उत्पन्न हुई है। जिन्होंके उत्पादक निःस्टही असढ हों वाही समाचारी आचरण करने योग है। (९) मत्त विषयशंका-एकहि तीर्थकरोंके आगम माननेवालोंके अलग अलग अभिप्राय, जेसे सिद्धसेन दिवाकराचार्यका मत्त है कि केवलीकों केवल ज्ञान और केवल दर्शन युगपात् समय उत्पन्न होता है क्युकि बारहवें गुणस्थान ज्ञानावर्णिय और दर्शनावर्णिय कर्मोका क्षययुगपात् समय होना शास्त्रकारोंने कहा है अगर एसा न माना जावे तो केवलीको ज्ञानावर्णिय कर्मका क्षय होना ही निर्थक होगा। और जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण कहते है कि केवलीको ज्ञान और दर्शन भिन्न समय होता है । क्याकि जीवका स्वभाव ही एसा है तथा केवल ज्ञान होता है वह साकार उपयोगमे होता है। जेसे मति ज्ञान श्रुतिज्ञान यह दोनौ सहचारी है तद्यपि कमसर होता है । इसी माफीक केवल ज्ञानदर्शनमें भी समझना, यह दो मत्त देख शंका होती है !
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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