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(५९) एवं छे. का.देश छेका प्रदेश कुल १८ बोल हुवा । और जो अजीब है वह रुपी भरुपी दो प्रकारसे हैं । जिसमें रुपीके चार भेद है। स्कंध, स्कन्धदेश, स्कंभप्रदेश और परमाणु । और वरुपी है वह ५ प्रकार है । धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय देश नहीं किंतु प्रदेश है । एवं मधर्मास्तिकायके दो भेद और कालका एक समय एवं १८-१-५ सर्व २७ बोल लोकाकाशमें पावे ।
(प्र.) भलोककी इच्छा !
(उ०) अलोकमें जीव नहीं यावत् अजीव प्रदेश नहीं है किन्तु एक मजीव द्रव्य अनंत अगरु लघु पर्याय संयुक्त सर्व माकाशसे अनंतमें भाग उणा (न्यून ) अर्थात् अशोकमें केवळ भाकाश है वह भी सर्व भाकाशसे लोकाकाश जितना न्यून है।
(०) हे भगवान् ! धर्मास्तिकाय कितना बड़ा है? . :. (उ०) लोक जितना अर्थात् जितना लोक हैउसके सर्व खानपर धर्मास्तिकाय है एवं अधर्मास्तिकाय, लोकानाशास्तिकाय, नीवास्तिकाय, पदलास्तिकाय भी समझना।।
(प्र०) अधोलोक धर्मास्तिकायको कितने भागमें स्पर्श किया? (उ०) माधी धर्मास्तिकायको कुछ अधिक।
(प्र०) तिरछा लोक धर्मास्तिकायको किनने भागमें स्पर्श किया है।
(उ०) धर्मास्तिकायका असंख्यात्मा माग स्पर्श किया है। __(प्र०) उर्द्धलोक धर्मास्तिकायको कितने मागमें पर्श किया है। ... (उ०) आधेसे कुछ न्यून स्पर्श किया है। .. ... (१०) रत्न प्रभा नारकी. धर्मास्तिकायको संख्यातमें भाग