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... (प.) आधा कर्मीमें आपने इतना जबरदस्त पाप. बताया इसका क्या कारण है ? 6 (उ०) आधा कर्मी भोगता हुवा आत्मीक धर्मका उलंघन करता है । कारन पहिले प्रतज्ञा करी थी कि में आधा कर्मी आहार न करूंगा। और जो आधा कर्मी आहारादि भोगनेवाला है वह पृथ्वी काय यावत् त्रस कायकी दयाको छोड देता है । और जिस जीवोंके शरीरसे आहार बना है उन जीवोंका भी उसने जीवित नहीं इच्छा इस वास्ते वह संसारमें परिअटन करता है।
(प्र०) जो साधु फासुक एसणीय (निर्वद्य ) आहार करे उसको क्या फल होता है ? .
(उ०) पूर्वसे विप्रीत अच्छा फल होता है । यावत् शीघ्र संसारको पार करता है। कारन वह अपनी प्रतिज्ञाका पालन करता है । जीवोंका जीवित चाहता है इस लिये संसारको शीघ्र पार करता है।
सेवं भंते सेवं भंते तमेव सचम् ।
थोकड़ा नं. १३ - श्री भगवती सूत्र श०२ उ०१०
( अस्तिकाय ) । (प्र०) हे भगवान् ! अस्ति काय कितने प्रकारकी है ? . (उ०) अस्तिकाय पांच प्रकारकी है । यथा धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गला स्तिकाय ।