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________________ (५०) पूर्वोक मत्तवादीयोंने जीवादि नव तत्व माना है. इन्होंका खास कारण यह है कि कीसी समयमें जैनोंक अन्दरसे निकलके अपने अपने मनः कल्पना कर अपना अपना मत्तको स्थापन किया है। ___ "पदर्शन जिन अंगमणिजे ". परमयोगीराज महात्मा आनन्दघनजी महारानके महावाक्यसे सिड होता है कि षट्दर्शन है वह एक अपेक्षासे जैनोंका एकेक अंग है परन्तु इन्ही बादीयोंने एकान्त नयकि अपेक्षासे अपने माप सत्य और दुसरोंकों असत्य ठेराते है वास्ते इन्ही एकान्तबादीयोंको मिथ्यात्वी केहते है। ___ श्री वीतराग तीर्थकर भगवानोंने केवलज्ञान केवलदर्शन द्वारे सर्व लोकालोकके पदार्थों को हस्ताम्बलकि माफीक देखके भव्य मीयोंकि कल्याणार्थे पदार्थकि परूपणा करी है वह स्याहाद अने. कान्तवाद सापेक्षपरूपणा करी है उन्होंको सम्यक् प्रकारे बहुश्रुतिः मी महाराजसे विनयपूर्व श्रवण कर सच्च अदना रखनेसे ही इस बारापार संसारका पर होगा। इति शम् । थोकडा नम्बर ११ सत्र श्री भगवतीजी शतक १ उदेशो ८ वा (आयुष्य बन्ध) (१०) हे भगवान् । जीव कितने प्रकारके है। (उ०) जीव तीन प्रकार के है यथा (१) बालजीव, प्रथम, दुसरा, तीसरा, और चोथागुणस्थान वर्तता जीव इन्ही च्यार गुणस्थानोंकि जीवोंको व्रत अपेक्षा
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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