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विलास मिले । साध्वीयोंने भगवानके समवसरणमें ऐसा निदान किया था.
भगवान् वीर प्रभु समवसरण स्थित साधु, साध्वीयोंके यह अकृत्य कार्य (निदान) को अपने केवलज्ञान द्वारा जानके साधु, साध्वीयोंको आमंत्रण कर (बुलवाय कर) कहेने लगेमहो ! आर्य ! आज राजा श्रेणिकको देखके तुमने पूर्वोक्त नि. दान किया है. इति साधु, हे साधीयों ! आज राणी चेलणाको देख तुमने पूर्वोक्त निदान किया है । इति साध्वीयों. हे साधु साध्वीयों ! क्या यह बात सची है ? अर्थात् तुमने पूर्वोक्त निदान किया है ? साधु, साध्वीयोंने निष्कपट भावसे कहा-हां भगवान् ! आपका फरमान सत्य है हम लोगोंने ऐसाही निदान कीया है.
हे आर्य ! निश्चयकर मैंने जो धर्म ( द्वादशांगरुप ) प्ररुपा है, वह सत्य, प्रधान, परिपूर्ण, नि:केवल राग द्वेष रहित शुद्ध-पवित्र, न्यायसंयुक्त, सरल, शल्य रहित, सर्व कार्यमें सिद्धि करनेका राहस्ता है, संसारसे पार होनेका मार्ग है, निवृतिपुरीको प्राप्त करनेका मार्ग है, अवस्थित स्थानका मार्ग है, निर्मल, पवित्र मार्ग है, शारीरिक मानसिक दुःखोंका अन्त करनेका मार्ग है, इस पवित्र राहस्ते चलता हुवा जीव सर्व का. याँको सिद्ध कर लेता है लोकालोकके भावोंको जाना है, स. कल काँसे मुक्त हुवे है. सकल कषायरुप तापसे शीतलाभूत हुवा है. सर्व शारीरिक मानासिक दुःखोका अंत किया है.