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________________ १०६ राजगृह नगरके दो, तीन, च्यार यावत् बहुतसे राहस्तेपर लोगोंको खबर मिलतेही बडे उत्साहसे भगवान को वन्दन करनेको गये. वन्दन नमस्कार कर, सेवा भक्ति कर अपना जन्म पवित्र कर रहेथे. भगवानको पधारे हुवे देखके महत्तर वनपालक भगवान्के पास आया, भगवानका नाम-गोत्र पूछा और हृदयमें धारण कर वन्दन नमस्कार कीया. बादमे वह सब वनपालक लोक एकत्र मिल आपसमे कहने लगे-अहो ! देवाणुप्रिय ! राजा श्रेणिक जिस भगवानके दर्शनकी अभिलाषा करते थे वह भगवान् आज इस उद्यानमें पधार गये है, तो अपनेको शीघ्रता पूर्वक राजा श्रेणिकसे निवेदन करना चाहिये. सब लोक एकत्रं मिलके राजा श्रेणिक के पास गये. और कहेते हुने कि-हे स्वामिन् ! जिस भगवानके दर्शनकी आपको प्यास थी अभिलाषा करते थे, वह भगवान् वीरप्रभु आज उद्यानमें पधार गये है. यह सुनकर राजा श्रेणिक बडाही हर्ष संतोषको प्राप्त हुवा सिंहासनसे उठ जिस दिशामे भगवान् विराजमान थे, उसी दिशामें सात पाठ कदम जाके नमोत्थुणं देके बोला कि-हे भगवान् ! आप उद्यानमें विराजमान हो, मैं यहांपर रहा आपको वन्दन करता हूं आप स्वीकार करीये. बादमें राजा श्रेणिक उस खबर देनेवालोंका बडाही
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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