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________________ १०४ (१०) दशवां अध्ययन. नौ निदानाधिकार. राजगृह नगर, गुणशीलोद्यान, श्रेणिक राजा, चेलणा राणी, इस सबका वर्णन जैसा उपवाइजी सूत्रके माफिक समझना. एक समय राजा श्रेणिक स्नान मजन कर, शरीरको चन्दनादिकका लेपन किया, कंठकी अन्दर अच्छे सुगन्धिदार पुष्पोंकी मालाको धारण कर सुवर्ण अादिसे मंडित, मणि आदि रत्नोंसे जडित भूषणों को धारण किये, हाथों की अंगु. लियोमें मुद्रिका पहनी, कम्मरकी अन्दर कंदोरा धारण किया है, मुगटसे मस्तक सुशोभनीक बना है, इत्यादि अच्छे वस्त्रभूषणोंसे शरीरको कल्पवृक्ष की माफिक अलंकृत कर, शिरपर कोरंटवृक्ष की माला संयुक्त छत्र धरापता हुमा, जैसे ग्रहगण, नक्षत्र, तारों के सुपरिवारसे चन्द्र आकाशमें शोभायमान होता है. इसी माफिक भूमिके भूगणरुप श्रेणिक नरेन्द्र, जितका दर्शन लोगोंको परमप्रिय है. यह एक समय बाहार की प्रास्थानशालाकी अन्दर आ कर राजयोग्य सिंहासनपर बैठके अपने अनुचरोंको बुलवायके ऐसा आदेश करता हुवातुम इस राजगृह नगरकी बाहार आराममें जावो, जहां स्त्री-. पुरुष क्रीडा करते हो, उद्यान जहां नानाप्रकारके वृक्ष, पुष्प, पत्रादि होते है. कुंभकारादिकी शाला, यतादिके देवालय,
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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