SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२०) मासिक प्रतिमा स्वीकार कीये हुवे मुनिको 'धू. पसे छायामें आना और छायासे धूपमें जाना नहीं कल्पै. धूप, शीतके परीपहको सम्यक्प्रकारसे सहन करनाही कल्पै. निश्चय कर यह मासिक भिक्षु प्रतिमा प्रतिपन्न अनगारको जैसे अन्य सूत्रोंमे मासिक प्रतिमाका अधिकार मुनियों के लीये बतलाया है, जैसे इसका कल्प है, जैसे इसका मार्ग है, वैसेही यथावत् सम्यक् प्रकारसे परीपहोंको कायाकर स्पर्श करता हुवा, पालता हुवा, अतिचारोंको शोधता हुवा, पार पहुंचाता हुवा, कीर्ति करता हुवा जिनाज्ञाको प्रतिपालन करता हुवा मासिक प्रतिमाको आराधन करे. इति. (२) दो मासिक भिक्षु प्रतिमा स्वीकार करनेवाले मुनि दोय मास तक अपनी काया (शरीर) की सार संभाल को छोड देते है. जो कोइ देव, मनुष्य, तिर्यच संबन्धी परीषह उत्पन्न होते है, उसे सम्यक प्रकारसे सहन करे, शेष अधिकार मासिक भिक्षु प्रतिमावत् समझना, परन्तु यहां दोय दात आहारकी, दोय दात पाणीकी समझना. इति । २। ___ (३) एवं तीन मासिक भिक्षु प्रतिमा. परन्तु भोजन, पाणीकी तीन तीन दात समझना. ( ४ ) एवं च्यार मासिक भिक्षु प्रतिमा परंतु भोजन पाणिकी च्यार च्यार दात समझना. (५) एवं पांच मासिक भिक्षु प्रतिमा. परन्तु पांच पांच दात समझना. (६)छे मासिक. दात छे छे. (७)
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy