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________________ नुकशान होता है. वास्ते उस गृहस्थ के लिये आप जल्दी नीकल जावे. (१३) मासिक प्रतिमा स्वीकार किये हुवे मुनिके पगमें कांटा, खीला, कांकर, फंस भांग जावे तो, उसे नीकालना नहीं कल्पै. परिषहको सहन करता हुवा इर्या देखता चले. (१४) मासिक प्रतिमा स्वीकार किये हुवे मुनिकी आंखमें कोइ जीव, रज, फुस, कचरा पड जावे तो उस मुनिको निकालना नहीं कल्पै. परीषहको सहन करता हुवा विहार करे. (१५) मासिक प्रतिमा स्वीकार किये हुवे मुनि चलते हुवे जहांपर सूर्य अस्त हो, वहांपरही ठहर जाना चाहिये. चाहे वह स्थल हो, जल हो, खाड, खाइ, पहाड, पर्वत. वि. पमभूमि क्यों न हो, वह रात्रि तो वहांही ठहरना, सूर्यास्त होनेपर एक पविभी नहीं चलना. जब सूर्य उदय हो, उस समय जिस दिशामें जानेकी इच्छा हो, वहांपरभी जा सकते है. ___ (१६) मासिक प्रतिमा स्वीकार किये हुवे मुनिको जहां पासमें पृथ्व्यादि हो, वहां ठहरके निद्रा या विशेष निद्रा करना नहीं कल्पै. कारण-सुते हुवाका हस्तादिका स्पर्श उस पृथ्व्यादिसे होगा तो जीवोंकी विराधना होगी, वास्ते दूसरा निर्दोष स्थानको देख रहै, वहांपर आनाजाना सुख पूर्वक हो सकता है. मुनिको लघुनीत, वडीनीतकी बाधाकोभी रोकना नहीं कल्पै. कारण यह रोगवृद्धिका कारण है. इस वास्ते पेस्तर
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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