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नहीं आवे. अर्थात् त्याग करे. यावत् नव मास करे. इति नौवी सारंभ प्रतिमा.
(१०) प्रसारंभ प्रतिमा - पूर्वोक्त सर्व नियम पाले और प्रतिमाधारीके निमित्त अगर कोइ आरंभ कर अशनादि देवे, तोभी उसको लेना नही कल्पै. विशेष इतना है कि इस प्रतिमाका आराधन करनेवाले श्रावक खुरमुंडन - शिरमुंडन कराके हजामत करावे, परन्तु शिरपर एक शिखा (चोटी) रखावे ताके साधु श्रावककी पहिचान रहें. अगर कोई करम्बवाला
के पूछे उस पर प्रतिमाधारीको दो भाषा बोलनी कल्पै. अगर जानता हो तो कहे कि मैं जानता हूं और न जानता हो तो कहे कि मैं नहीं जानुं ज्यादा बोलना नहीं कल्पै यावत् दश मास धरे. इति दशवी प्रतिमा.
(११) श्रमणभूत प्रतिमा - पूर्वोक्त सर्व क्रिया साधन करे खुरमंडन करे. स्वशक्ति शिरलोचन करे. साधुके माफिक वस्त्र, पात्र रखे, आचार विचार साधुकी माफिक पालन करते हुवे चलता हुवा इर्यासमिति संयुक्त च्यार हस्त प्रमाण जमीन देखके चले अगर चलते हुए राहस्ते त्रस प्राणी देखें तो यत्न करे. जीव हो तो अपने पात्रको उंचा नीचा तिरछा रखता हुवा अन्य मार्ग में प्राक्रम करे. मिक्षा के लिये अपना पेजबन्ध मुक्त न होनेसे अपने न्यातके घरोंकी भिक्षा करनी कल्पै. इसमें भी जिस घरपे जल है, पूर्वे चावल तैयार हो और दाल तैयार पीछे से होती रहे, तो चावल लेना कल्पै, दाल