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________________ (५) अवधिज्ञान--पूर्वे उत्पन्न नहीं हुवा ऐसा उत्पन्न होनेसे जघन्य अंगुलके असंख्याते भागे उत्कृष्ट संपूर्ण लोकको जाने, जिससे चित्तसमाधि होती है. अवधिज्ञान किसको प्राप्त होता है ? जो तपस्वी मुनि सर्व प्रकारके कामविकार, विषयकषायसे विरक्त हुवा हो; देव, मनुष्य, तिथंचादिका उपसगोको सम्यक् प्रकारसे सहन करे, ऐसे मुनियोंको अवधिज्ञान होनेसे चित्तसमाधि होती है. (६) अवधिदर्शन-पूर्व उत्पन्न न हुवा ऐसा अवधिदर्शन उत्पन्न होनेसे जघन्य अंगुलके असंख्याते भागे और उत्कृष्ट लोकके रुपीद्रव्योंको देखे. अवधिदर्शनकी प्राप्ति किसको होती है ? जो पूर्व गुनोंवाले, शांत स्वभावी, शुभ लेश्याके परिणामवाले मुनि उर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्छालोकको अवधिज्ञान द्वारा रुपीपदार्थोंके देखनेसे चित्तमें समाधि उत्पन्न होती है. (७) मनःपर्यवज्ञान-पूर्व प्राप्त नहीं हुवा एसा अपूर्व मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होनेसे अढाइद्वीपके संज्ञीपर्याप्ता जीवोंका मनोभावको देखते हुवे चित्तसमाधिको प्राप्त होता है. मनःपर्यवज्ञान किसको उत्पन्न होता है ? सुसमाधिवन्त, शुक्ललेश्यावन्त, जिनवचनमें निःशंक, अभ्यन्तर और बाह्य परिणहका सर्वथा त्यागी. सर्व संगरहित, गुणोंका रागी इत्यादि गुण संयुक्त हो, उस अप्रमत्त मुनिको मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होता है. (८) केवलज्ञान-पूर्वे नहीं हुवा वह उत्पन्न होनेसे
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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