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________________ यह आठ प्रकारकी संपदा आचार्यकी तथा आठ प्रकारका विनय शिष्यके लिये कहा. क्योंकि विनय प्रवृत्ति रखनेहीसे शासनका अधिकारी और शासनका कुछ कार्य करने योग्य हो सक्ता है. इस प्रवृत्तिमें चलना और चलाना यह कार्य आचार्य महाराजका है. इति श्री दशाश्रुत स्कंध-चतुर्थाध्ययनका संक्षिप्त सारे. (५) पंचम अध्ययन. चित्त समाधिके दश स्थान है - वाणियाग्राम नगरके दुतिपलासोद्यानमें परमात्मा वीरप्रभु अपने शिष्यरत्नोंके परिवारसे पधारे, राजा जयशत्रु च्यार प्रकारकी सेना संयुक्त और नगर निवासी लोक बडेही आडम्बरके साथ भगवानको वन्दन करने आये. भगवानने उस विशाल परिषदको विचित्र प्रकारसे धर्मकथा सुनाइ. जीवादि पदार्थका स्वरुप समजाते हुवे आत्मकल्याणमें चित्तसमाधिकी खास आवश्यक्ता बतलाइथी. परिषदने प्रेमपूर्वक देशना श्रवण कर आनन्द सहित भगवानको वन्दन नमस्कार कर आये जिस दिशामें गमन कीया. भगवान् वीरप्रभु अपने साधु-साध्वीयोंको आमंत्रण कर आदेश करते हुवे कि-हे आर्यो ! साधु, साध्वी पांच स
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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