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इच्छा लोलुपता अर्थात् तृष्णाको बढाना, वह सर्व कार्योका. पलिमन्थु है. (६) तप-संयमादि कृत कार्यका बार बार निदान (नियाणा) करना, यह मोक्ष मार्गका पलिमन्थु है. अर्थात् यह छ वातों साधुवोंको नुकशानकारी है. वास्ते त्याग करना चाहिये.
(२०) छे प्रकार के कल्प है. (१) सामायिक कल्प, (२) छेदोपस्थापनीय कल्प, (३) निवट्टमाण, (४) निवडकाय, (५) जिनकल्प, (६) स्थविरकल्प इति. '
इति श्री बृहत्कल्पसूत्र-छट्ठा उद्देशाका संक्षिप्त मार.
* इति श्री बृहन्कल्पसूत्रका संक्षिप्त सार समाप्त.