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नाम प्रचलित है। यहां पर तालवृक्ष के फलकी प्रकृति लंबी और गोल समझनी चाहिये । प्रचलित भाषा में जैसी केलेकी कृति होती है । साधु साध्वीयोंको ऐसा कच्चा फल लेना नहि कल्पै ।
(२) कल्प - साधु साध्वीयोंको कच्चा तालवृक्षका फल, जो उस फलकों छेदन भेदन करके निर्जीव कर दिया है, अथात् वह अचित्त हो गया हो तो लेना कल्पै ।
(३) कल्पै - साधुवोंको पक्का तालवृक्षका फल; चाहे वह छेदन भेदन कीया हुवा हो, चाहे छेदन भेदन न भी कीया हो, कारण - वह पका हुवा फल अचित्त होता है ।
(४) नहि कल्पै - साध्वीयोंको पका तालवृक्षका फल, जो उसको छेदन भेदन नहि कीया हो, कारण- उस पूर्ण फलकी आकृति लंबी और गोल होती है।
(५) कल्पै - साध्वीयोंको पका तालवृक्षका फल, जीसको छेदन भेदन कीया हो, वह भी विधिसंयुक्त छेदन भेदन कीया हुवा हो, अथात् उस फल ऊभा नही चीरता हुवा, बीच से टुकडे किये गये हो, ऐसा फल लेना कल्पै । (६) कल्पै – साधुवोंको निम्न लिखित १६ स्थानों, शहरपना (कोट) संयुक्त और शहरके बहार वस्ती न हो, अर्थात् उस शहरका विभाग अलग नहीं हुवे ऐसा ग्रामादिमें साधुको शीतोष्णकालमें एक मास रहना कल्पै ।