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________________ जाय. अगर भाप्य चूर्णि आदि विवरणों में द्रव्य क्षेत्र समयानुसार दुप्कालादिके कारणसे अपवाद मार्गका प्रतिपादन किया है वह “ असक्त प्ररिहार " उस विकट अवस्थाके लिये ही है; परन्तु सूत्रोंमें "सुत्थो खलु पढमो" ऐसाभी तो उल्लेख है कि प्रथम सूत्र और सूत्रका शब्दार्थ कहना. इस आदेशसे अगर मूल सूत्र और सूत्रका शब्दार्थसे ही शिष्यको छेद सूत्रोंकी वाचना दे तो क्या हर्ज है ? क्योंकि इतनेसे मुनियोंको अपने मार्गका मामान्यतः बोध हो सक्ता है. ___ वहोतसे ग्रन्थोमें छेदसूत्रोंके परिमाणकी आवश्यकता होनेपर मूल सूत्रोंका पाठ लिख उसका शब्दार्थ कर देते हैं. इस तरह अगर सम्पूर्ण छेद सूत्रोंकी भाषा कर दी जाय तो मेरे ख्यालसे कोइ प्रकारकी हानी नहीं है, बल्कि अज्ञानके अन्धेरेमें गिरे हुवे महात्माओंके लिये मूर्यके समान प्रकाश होगा. दूसरा सवाल यह रहा कि छेदसूत्रोंके पठन पाठनके अधिकारी केवल मुनिराज ही होते हैं और छपवाके प्रसिद्ध करा दिये जानेपर सब साधारण (श्रावक) लोकभी उनके पढने के अधिकारी हो जावेंगे. इस वातके लिये फिकर करनेकी आवश्यकता नहीं है. यह कायदा जबकि सूत्रोंकी मालकी अपने पास थी. याने सूत्र अपनेही कबजे रक्खे हुवे थे, तब तकचल सक्ती थी; परन्तु आज वे सूत्र हाथोहाथ दिखाई देते है. तो फिर इस बातकी दाक्षिण्यता क्यों ? अन्य लोक भी जैनशास्त्रोंको पढते है तो फिर श्रावक लोगोंने ही क्या नुकसान किया है कि उनकों सूत्रोंकी भाषा भी पढनेका अधिकार नहीं.
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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