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________________ १४७ 1 जो धान्य सरसव है वह दोय प्रकार के है (१) शस्त्र लगा हुवा अनि प्रमुखका । जिससे अचित हो जाता है । (२) शस्त्र नही लगाहो ( सचित ) वह हमारे श्र० नि० अभक्ष है । जो शस्त्र लगाहुवा है उसका दो भेद है (१) एषणीक बेयालास दोष रहीत (२) अनेषणीक, जो अनेसणीक है वह हमारे श्र० नि० अभक्ष है । जो एबणीक है उसका दोय भेद है (१) याचीहुइ ( २ ) अयाचीहुइ, जो, अयाचीहुई है वह श्र० नि० अभक्ष है। जो याचीहुई है उसका दो भेद है (१) याचना करनेपर भी दातार देवे वह लडिया और नदेवे वह अलद्धिया, जिसमें अलडिया तो श्र० नि० अभक्ष है ओर efer है वह भक्ष है इस वास्ते हे सोमल सरसव भक्षभि है अभक्षभि है । ( प्र०) हे भगवान ! माला अपको भक्ष है या अभक्ष है ? ( उ० ) हे सोमल ! स्यात् भक्ष भी है स्यात् अभक्ष भी है । ) क्या कारण है एसा होनेका ? ( प्र० ( उ० ) हे सोमल ! तुमारे ब्रह्मणोंके न्याय ग्रंथमें मासा दोय प्रकारके है (१) द्रव्यमासा (२) कालमासा, जिसमें कालमासा तो श्रावणमासा से यावत् आसाढमासा तक एवं बारहमासा श्र० नि० अभक्ष है और जो द्रव्यमासा है जिस्का दोय भेद है (१) अर्थमासा (२ धान्नमासा. अर्थमासा तो जेसे सुवर्ण चांदी के साथ तोल कया जाता है वह श्र० नि० अभक्ष है और धान्नमासा ( उडद ) सरसवकी माफीक जो लद्धिया है वह भक्ष है । इसवास्ते हे सामल मासा भक्ष भी है अभक्ष भी है। ( प्र०) हे भगवान ! कुलत्थ भक्ष है या अभक्ष है 1 ( उ० ) हे सोमल ? कुलत्थ भक्ष भी है अभक्ष भि है । ( प्र०) हे भगवान ! एसा होनेका क्या कारण है ?
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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