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वैमान, चोथा अप्राजत वैमान, पांचवा छटा सर्वार्थसिद्ध वैमान। शेष च्यार मुनि विजय वैमानमे उत्पन्न हुवे । वहांसे चवके सव महाविदेह क्षेत्रमें पूर्ववत् मोक्ष जावेगा। इति प्रथम वर्गके दशाध्यायन समाप्तम् । प्रथम वर्ग समाप्तम् ।
(२) दुसरे वर्गका तेरह अध्ययन है ।
प्रथम अध्ययन-राजगृह नगर श्रेणिकराजा धारणी राणी सिंह सुपनसूचित दीर्घसेन कुमरका जन्म वाल्यावस्था कलाभ्यास पाणीग्रहन आठ राजकन्यावोंके साथ विवाह यावत् मनुष्य संबंधी पांचो इन्द्रियके सुख भोगवते हुवे विचर रहाथा । भगवान वीर प्रभुका आगमन हुवा धर्मदेशना सुनके दीर्घसेन कुमार दीक्षा ग्रहण करी सोला वर्षकी दीक्षा पालके विपुलगिरि पर्वत पर एक मासका अनसन कर विजय वैमान गये वहांसे एकही भव महाविदेह क्षेत्रमें उत्तम जाति कुलमें जन्म ले के फीर केवली प्ररूपित धर्म स्वीकार कर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष जावेगा। इति प्रथमाध्ययन समाप्तम् । १।
- इसी माफीक (२) महासेन कुमर (३) लठदन्त (४) गूढ दन्त (५) सुद्धदन्त (६) हलकुमर (७) दुम्मकु० (८) दुमसेन कुछ (९) महादुमसेन (१०) सिंह (११) सिंहसेन (१२) महासिंहसेन (१३) पुन्यसेन यह तेरह राजकुमर श्रेणिक राजाकि धारणी राणीके पुत्र थे भगवान समिप दीक्षा ले १६ वर्ष दीक्षा पाळी विचित्र प्रकारकि तपश्चर्या कर अन्तिम विपुलगिरि पर्वतपर अनसन करके क्रमःसर दोय मुनि विजयवैमान, दोय मुनि विजयन्त वैमान, दोय मुनि जयन्त वैमान शेष सात मुनि स