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________________ ८६. माताजी ने कहा कि हे पुत्र ! अगर आप दीक्षा ही लेना चाहते हो तो एक दिनका राज कर मेरे मनोरथकों पूर्ण करों । अमन्तोकुर इस बातको सुनके मौन रहा। जब माता-पिताने बडा ही आडम्बर कर कुमरका राजअभिषेक कर बोले कि हे लालजी आप कि क्या इच्छा है आज्ञा करों । कुमरने कहा कि तीन लक्ष सोनइया लक्ष्मीके भंडारसे निकाल दो लक्षके रजोहरण पात्रा और एकलक्ष हजामकों दे मेरे दीक्षा कि तैयारी कराबों । जेसे महाबलकुमरके दीक्षाका महोत्सव कीया इसी माफीक वडे ही महोत्सव पूर्वक भगवानके पास अमन्ताकुमरको भी दीक्षा दराइ । तथारूपके स्थिवरों के पास एकादशांगका ज्ञान कीया । * बहुत वर्ष दीक्षा पाली गुणरत्न समत्सरादि तप कर अन्तमे व्यवहार गिरिपर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष गया ।। १५ । 1 सालवा अध्ययन - वनारसी नगरी काम वनोद्यान अलख नामका राजाथा, उस समय भगवान वीरप्रभुका आगमन हुवा कोणकको माफीक अलखराजाभी वन्दन करने को गया । धर्म * भगवतीसूत्र शतक ५ उ०४ में लिखा हैं कि एक समय बडी वरसाद वर्ष के बादमें स्थिवरों के साथ में अमन्तोबालऋषि स्थंडिले गया था स्थिवर कुच्छ दूर गये थे अमन्तोॠषि पीच्छे आते समय पाणीक अन्दर मट्टीकी पाल बान्ध अपने पासकी पातरी उस्मे डाल तीरती हुइ देख बोलता है कि यह मेरी नइया ( नौका ) तिर रही है | दुर स्थिवरोंने देखा उसी समय स्थिवरोंकों बडा ही विचार हुवा कि देखो यह बालऋषि क्या अनुचित कीडा कर रहा है। वह एक तर्फसे भगवानक समिप आंके पुच्छा कि हे भगवान! आपका शिष्य अमन्तो बालऋषि कितना भव कर मोक्ष जावेगा । भगवनने उत्तर दिया की हे स्थिवरों अमन्ताऋषि कि हीलना मत करों यावत् अमन्तोऋषि चरम शरीरी अर्थात् इसी भवमें मोक्ष जावेगा । वास्ते तुम सब मुनि बालऋषिकि व्यावच करो | इति । /
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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