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श्रीरत्नप्रभ मूरि सदगुरुभ्यनमः
अथ श्री शीघ्र बोध, भाग १६ वा
प्रश्नोत्तर नं०६ (सूत्र श्री उपवाइजीसे प्रश्न २२) चम्पानगरीके पूर्णभद्र नामका उधानमें भगवान वीर प्रमु अपने शिष्य मंडलसे पधारे । उन्ही समय देवतोंके इन्द्र और देवदेवो तथा विधाघर भगवानकों वन्दन करनेकों आये थे तथा राना कोणक बडे ही आडम्बरसे च्यार प्रकारको शैनाके साथ वन्दन करनेकों आया। और नगर निवासी लोग भी आनन्द चित्त होके भगवानकि देशनाका अमृतपान करनेकों आये थे उन्हीं बारहा प्रकारकि परिषदकों भगवान्ने जगतारक विचित्र प्रकारकि देशना फरमाइ, जिसमें मौख्य मोक्षमार्ग आराधन करनेके लिये साधु धर्म और श्रावक धर्म का विवरण कर सुनाया। परिषदा धर्म देशना श्रवण कर आनन्द चित्तसे यथाशक्ति त्याग वैराग धारण कर स्वस्वस्थानकों गमन करती हुई । - भगवान गौतमस्वामि सविनय . परमेश्वर वीर प्रभुसे शंकाकि निवृत्ति और ज्ञान वृद्धिके हेतुसे प्रश्न किया वह भन्यातमावोंके बोधके लिये यहांपर लिखते है। (१) प्रश्न हे तरूणासिन्धु । इस आरा पार संसारके अंदर ।
१ असंयतिनोव-संघम करके रहित । '.. २ अवृति जीव व्रत करके रहित ।