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द्वितीयो रागविवेकाध्यायः ४. धा धा मा गा मा मा धूम्र श शि मा मा मा गा मा धा
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धा धा धा धनि गा मा मा मा
-इत्याक्षिप्तिका।
इति गौडपञ्चमः ।
गौडकैशिकः उद्भतः कैशिकीषड्जमध्यमाभ्यां ग्रहांशसः ॥४५॥ सकाकलिः पञ्चमान्तः पूर्णः षड्जादिमूर्छनः। आरोहिणि प्रसन्नादिभूषितः करुणे रसे ॥४६॥ वीरे रौद्रेऽद्भते गेयः शिशिरे शंकरप्रियः। दिनस्य मध्यमे यामे द्वितीये गौडकैशिकः ॥४७॥
सासा सग सनिसरी मगगसमम पम निप पगम गरि रिगम मस । गसां संनि सरिम गपम पपरिमपाधारी मापाधानि रिमापा धास नि सासा। सासा (षड्ज)
(सं०) गौडकैशिकं लक्षयति- उद्भूत इति । ग्रहोंऽशश्च सः षड्जो यस्य । पश्चमान्तः पञ्चमन्यासः ॥ ४५-४७॥
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