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संगीतरत्नाकरः
[प्रकरणम्
रेवगुप्तः
षड्जग्रामे रेवगुप्तो मध्यमार्षभिकोद्भवः ॥ १० ॥ रिग्रहांशो मध्यमान्तः प्रसन्नाद्यन्तभूषितः। बुधैरुद्भटचारीकमण्डलाजो नियुज्यते ॥ १०१ ॥ वीररौद्राद्भुतरसः पार्वतीपतिवल्लभः।
रीसंनीरिसं मगा मामा गा मा माम ग मम ग पप ग ममगा गरी। रिगा ममगाधरी रि निनिधाध(पञ्चम)पपनि पनि म ममनि पापपसनि निनिरीरी रि सनी निरिम(गान्धार)रिरिनि । निनिरिनिरिरिमगामधा मामा (मध्यम) गमधम मगागरिरि गाममगा गरि रि गाममगागरि रि निनि धनी सारी मगामा-इत्यालापः ।
रि (ऋषभ) रि निधा (पञ्चम) निध धा (मध्यम) मपरी (ऋषभ) री धापा (पञ्चम) नी नी सा नी री सानि रि (ऋषभ) री री गसनिधनि (पञ्चम) धनि मा (मध्यम) म (पञ्चम) पपप सनी नि निगरि रिग रिग सारिरि सानी नी (गान्धार) रि गा गारी सानी नि रि पगमामा रिरि मगरी समगरि सनि (ऋषभ) रि री रिमा (मध्यम) गं मन्नीं पा (पश्चम) नी नी री री गामा मम मध मगग म रीरी नी नी गप (षड्ज) स (पश्चम) माप मध धस मासमरि पाप मग नीरी रि गसनी निनि मरिरि गम गरी रि मसानी पमम मग मरी री। रिरि नि निगम मरिमग गरिरि मा माध निधा । धम धनि पा पाम पा। पसनी नि
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