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इस सम्बन्ध में एक दृष्टान्त इस प्रकार हैं
" एक भाग्य-हीन भिक्षुक किसी समूह के साथ मार्ग में हो गया । मार्ग में उस समूह को प्यास लगी ! संयोगवश वर्षा के बादल जल-वृष्टि करने लगे, जिस समूह परन्तु में वह भिक्षुक था वहां वृष्टि नहीं होती थी, फिर उस समूह के दो-तीन भाग हो गये, एक समूह के पृथक-पृथक दो-तीन समूह हो गये । उन तीनों समूहों में से जिन समूहों में वह भिक्षुक नहीं था, वहाँ वृष्टि होने लगी, परन्तु उस भिक्षु पर नहीं होती थी । "
इस दृष्टान्त का सार यही है कि जिस प्रकार उस भिक्षुक ने समूह के ५०० मनुष्यों के पुण्य का हनन किया, उसी प्रकार भाग्यहीन भी कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न लब्धिवन्तों की लब्धि का हनन करते हैं । इस प्रकार भाग्यहीनों के संयोग से भाग्य शालियाँ के पुण्य भी नष्ट हो जाते हैं ।
प्रश्न ३१:- गृहस्थ द्वारा भाव तीर्थंकरो के निमित्त बनाया हुआ आहार तथा जिनप्रतिमाओं के सम्मुख चढ़ाने के लिये बनाया हुआ पक्वान्न आदि साधुयों को कल्पना है या नहीं ?
उत्तरः- भाव तीर्थंकारों के लिये बनाये गये श्राहार तथा तीर्थकरों की प्रतिमाओं के सामने चढ़ाने केलिये तैयार
किये गये पक्वान्न आदि साधुयों को कल्पते हैं । श्री बृहत्कल्प भाष्य में कहा है :
"संव मेह पुष्का सत्य निमित्त कथा जड़ जईणं । नहु लब्भा पडिसिद्ध ं किं पुरा पडिम
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