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( १२ ) प्युत्थिताः शृण्वन्ति पुरुषास्तु द्रव्यतो भाज्या भावोत्थितानां तु धर्ममावेदयत्युत्तिष्ठासूनां च देवानां तिरश्चां च येऽपि कौतुकादिना शृण्वन्ति तेभ्योऽप्याचष्टे, इत्यादि ।"
-उठना दो प्रकार से होता है, १ द्रव्य से तथा २ भाव से । द्रव्य से उठना शरीर के द्वारा होता है तथा भाव से उठना ज्ञानादि से युक्त होने पर होता है। समवसरण में स्त्रियाँ दोनों ही प्रकार से उठकर धर्मं सुनती हैं।
पुरुषों के लिये यह बताया गया है कि वे द्रव्य से उठे या न उठे परन्तु भाव से अवश्य उठे होने चाहिये। ऐसे भावोत्थित पुरुषों को ही भगवान् धर्मोपदेश सुनाते हैं। परन्तु धर्म सुनने के लिये खड़े रहने की इच्छा रखने वाले देवों और नियंञ्चों को तथा जो कौतुकवश सुनते हैं, उनको भी भगवान् धर्मोपदेश सुनाते हैं, जिससे ये जीव भी सुनते सुनते कभी भाव से उठ सकते हैं। प्रश्न :-८. समवसरण में द्वितीय पौरुषो के अन्तर्गत जब भगवान्
देवछन्दक में चले जाते हैं तब कौन किस स्थान पर
बैठकर धर्मोपदेश देता है ? | उत्तर :- प्रथम गणधर अथवा अन्य गणधर राजा के द्वारा
लाये गये सिंहासन पर या भगवान के पाद पीठ पर विराजमान हो धर्मोपदेश देते हैं। जैसा कि वृहत्कल्प
वृत्ति के प्रथम खण्ड में कहा है :
" इत्थं बलौ प्रक्षिप्ते भगवानुत्थाय प्रथमप्रकारान्तरादुत्तर द्वारेण निर्गत्य पूर्वस्यां दिशि स्फटिकमये देवछन्दके
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