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नवपूर्वी एवं ग्रामर्ष प्रौषध्यादि विविध लब्धि सम्पन्न मुनिगरण पूर्व दिशा के द्वार से प्रवेश कर त्रिप्रदक्षिणा के साथ यथाक्रम, नमस्तीर्थाय नमो गणधरेभ्यः नमः केवलिभ्यः इन शब्दों के साथ नमस्कार करके केवलियों के पीछे बैठते हैं । शेष मुनिगण भी पूर्वदिशा के द्वार से समवसरण में प्रवेश करके त्रिप्रदक्षिणा भगवान को वन्दन कर " नमस्तीर्थाय नमोगरणभृद्भ्यः नमः केवलिभ्यः, नमोऽतिशय ज्ञानिभ्यः " ऐसा कहते हुए अतिशय धारी मुनियों के पीछे बैठते हैं । इसी प्रकार मनः पर्याय ज्ञानी यदि मुनिगरण नमस्कार करते हुए अपने अपने स्थान पर चले जाते हैं ।
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इसके पश्चात् वैमानिक देवों को देवियां पूर्वद्वार से प्रवेशकर भगवान को त्रिप्रदक्षिणा पूर्वक "नमः तोर्थाय नमः सर्वसाबुभ्यः " ऐसा कहती हुई अनुक्रम से वन्दन करके सामान्य साधुयों के पीछे खड़ी हो जाती हैं, बैठती नहीं । साध्वियां भी पूर्वद्वार से प्रवेश कर तीर्थंकर को प्रदक्षिणा पूर्वक प्रणाम करती हुई तीर्थ एवं साधुओं को नमस्कार करके वैमानिक देवियों के पीछे खड़ी हो जाती हैं, बैठती नहीं । भवनपति की देवियां, ज्योतिष्क देवियां एवं व्यन्तर देवियां दक्षिण दिशा से प्रवेश कर तीर्थंकरादिकों को नमस्कार करती हुई नैऋत्य कोण में यवान खड़ी हो जाती हैं ।
भवणवई जोड़सिया बोद्धव्वा वाणमन्तर सुगव । वेमाशिव या पयाहि जं च निस्साए ॥
-भवनपति, ज्योतिष्क, वानव्यन्तरादिदेव भगवान् को वन्दन कर वायव्यकोण में पीछे खड़े रहते हैं । वैमानिक देव, मनुष्य एवं
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