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प्रसन्नाः सन्तु गुरवो, बुद्धि दिशतु भारती । येन सम्यक् प्रजायेत, प्रयासः सफलो मम ।।
सद्गुरुदेव मुझ पर प्रसन्न रहें ! सरस्वती देवी मुझे बुद्धि प्रदान करे, जिससे मेरा यह शुभ प्रयत्न भली प्रकार सफल हो!
प्रश्नावली प्रश्नः-१. समवसरण स्थित भगवान् किस आसन से विराज
मान होकर देशना देते हैं ? पद्मासन से अथवा अन्य
प्रासन से ? उत्तर :- इस विषय में कई आचार्यों का कहना है कि चैत्य-गृह
(जिन मन्दिर) में जिनेश्वर भगवान् के आसन का जो स्वरूप है, उसी प्रासन से देशना देते हैं। किन्तु यह कथन तो लोक-व्यवहार की दृष्टि से कहा गया प्रतीत होता है। निश्चयात्मक रूप से तो भगवान् पाद-पीठ पर चरण स्थापित कर, सिंहासन पर विराजमान होने के पश्चात् योग मुद्रा से हाथ धारण कर धर्म देशना करते हैं। इसी कारण से भगवान् के प्रतिरूप के समान होने से प्राचार्यगरण भी प्रायः इसी मुद्रा से व्याख्यान देते हैं। केवल इनमें यह विशेषता रहती है कि ये मुखवस्त्रिका धारण करते हैं। इस सम्बन्ध में " चैत्य वन्दन महाभाष्य' में भी
कहा है कि :जं पुण भणंति केई, श्रोसरणे जिणसरूवमेयं तु । जणववहारो एसो परमत्थो, एरिसो एत्थ ॥५३॥
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