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प्रश्न-पद्धति के बाद तो अनेक प्रश्नोत्तर शैली के ग्रन्थ रचे गये और उनके द्वारा जिज्ञासुनों के प्रश्नों का समाधान होने के साथ-साथ अन्य अनेक व्यक्तियों की भी ज्ञान वृद्धि हुई । प्रस्तुत क्षमाकल्याणजी रचित प्रश्नोत्तर - सार्धशतक ग्रन्थ भी इस परम्परा का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है |
प्रश्नोत्तर - सार्धशतक में १५१ प्रश्नों का उत्तर दिया गया । इसके रचयिता क्षमाकल्याणजी अपने समय के बहुश्रुत और गीतार्थ विद्वान थे । समय-समय पर उनको अनेक यति और श्रावकादि प्रश्न करते रहते थे । दूर-दूर से भी पत्र द्वारा उन्हें प्रश्न पूछे जाते रहते थे और वे उन सबका सप्रमाण उत्तर देते हुये समाधान किया करते थे । हमारे संग्रह में और बीकानेर के बृहद् ज्ञान भण्डार में ऐसे कई पत्र एवं प्रतियां प्राप्त हैं । प्रस्तुत प्रश्नोत्तर - सार्धशतक में उठाये हुये प्रश्न, किसने और कब किये इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता । इस ग्रन्थ की रचना का उद्देश्य जैसा कि रचयिता ने अन्त में स्वयं स्पष्ट किया है कि अपनी स्मृति के लिये इस ग्रन्थ की रचना की गई है । ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है, पूर्वार्द्ध में ७५ और उत्तरार्द्ध में ७६ प्रश्नोत्तर हैं । अन्तिम प्रशस्ति से विदित होता है कि इसकी रचना जैसलमेर में प्रारम्भ हुई, फिर कुछ बीकानेर में रचा गया और पूर्ण जैसलमेर में ही हुआ । संवत् १८५१ के जेठ सुदी ५ को यादव ( भाटी ) नरेश मूलराज के राज्यकाल में यह ग्रन्थ पूर्ण हुआ ।
प्रस्तुत ग्रन्थ को सर्व प्रथम पत्राकार रूप में संवत् १९७३ काती सुदी ५ को बम्बई के निर्णय सागर प्रेस में छपवाकर सूरत निवासी फकीरचन्द घेलाभाई ने प्रकाशित किया । खरतरगच्छ के श्राचार्य श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी के शिष्य मुनि सुखसागरजी ने इसका संशोधन किया है ।
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