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(कल्याणविजय) (२) विजयचन्द (विवेकविजय) (३) विनयचन्द (विद्यानन्दन) (४) धर्मानन्द (धर्मविशाल) । इनमें से कल्याणविजय के शिष्य गुणानन्द (गोविन्द हुये जिनके शिष्य मोतीचन्द (महिमाभक्ति) और उनके शिष्य शिवचन्द (सत्सोम) और मुकनचन्द हुये । मुकनचन्दजी का शिष्य जयकरण अभी विद्यमान है।
दूसरे शिष्य विवेकविजय के शिष्य ज्ञानानन्द (ज्ञानचन्द) हुये । उनके शिष्य मयाचन्द (मेरुधर्म) और ठाकुरसी (दयाराज) हुये। इनमें से मयाचन्द के शिष्य लक्ष्मण (लाभराज) और नन्दराम (नयसुन्दर) हुये तथा ठाकुरसी के शिष्य का नाम सिरदारा था।
धर्मानन्द जी के शिष्य सुगनजी (सुमतिविशाल) हुये जिनके रचित अनेक पूजायें और चौवीसी आदि प्राप्त हैं। उपरोक्त परम्परा यति समाज को हो समझनी चाहिये।
खरतरगच्छ में जो अभी साधु-साध्वी समुदाय है उनमें क्षमाकल्याणजी की परम्परा के ही साधु-साध्वी अधिक हैं। साधु परम्परा सम्बन्धी 'सुख-चरित्र' आदि ग्रंथों द्वारा विशेष जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
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