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"आपके हरस को तकलीफ असाता घणो सुरगी सो दुखी भया । सरीर का जतन मूल करावो नहीं सो ठाक नहीं, बगसी रामजी बठे है उनां पासे जतन करावसी । सरोर वृद्ध है आप भांडासरजी नेमिनाथजी पधारा सो भली न छै । चोवोसढा, आदिमरजी प्रमुख देहरा सोइ नेमिनाथ है, आप उतनो खेचल न करावसो।" इत्यादि
संवत् १८७३ के श्रावण कृष्णा ६ को आपने जैसलमेर ज्ञानानंदादि को पत्र दिया था उसमें लिखते हैं
"हमारे फोडा-फुन्सी की अशाता बहुत रहती है. मुकोम ! भीखरणदास हर्षोपशमन को पुड़िया देते है अब लेहु नहीं जाता है। अब हरस की साता है पूडी २१ ली, फोडों को कुछ कसर है सो (ठोक) हुय जासी" इत्यादि । मिति भाद्रव कृष्ण ५ को उपरोक्त स्थान और मुनियों को दिये पत्र में
_ "हरस का लेहु बंध हुमा को दिन १०-१२ हुए, फोडाफुन्सी २/३ रहा है सो मिट जासी । पिड को दरद तथा दमको आ जा (जो ?) र तौ सागी तरे है लेहु बहुत गया । सरीर सुस्त है, व्याख्यान उत्तराध्ययन १४ वां अध्ययन बांचें है, समरादित्य चरित्र पाना ८५ भया, चोथे भव के १ पानो बाकी है" इत्यादि ।
इन पत्रों से आपकी शारीरिक परिस्थिति पर काफी प्रकाश पड़ता है । इस प्रकार शारीरिक अस्वस्थता वश सं० १८७३ के पौष कृष्णा १४ मंगलवार को बीकानेर में आपका स्वर्गवास हुआ । दादाजी के स्थान में आपकी चरण पादुकायें और श्रीमंधर स्वामी मंदिर में आपकी मूर्ति है। जिनके लेख हमारे
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