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(२६) २. उत्तमकुमार चरित्र। ३. नवतत्व स्वरूप यंत्र। ४. कर्म ग्रन्थ यंत्र। ५. चैत्यवंदन भाष्य यंत्र ६. जीव विचार यंत्र। ७. दंडक यंत्र। ८. संघयणी यंत्र। ६. क्षेत्र समास यंत्र। १०. नवकार मंत्र।
इनके शिष्य चारित्र सागर ने क्षमाकल्याणजी रचित साधु विधि प्रकाश का भाषानुवाद संवत् १८९६ में नागौर में बनाया।
(उपाध्याय क्षमाकल्याणजो समरादित्य चरित्र की अपूर्ण रचना कर स्वर्ग सिधारे अतः आपने उक्त ग्रंथ को संवत् १८७४ माघ शुक्ला ३ को पूर्ण किया)
उमेदचन्द
श्री जिन भक्ति सूरि शाखा के रामचन्दजी के श्राप शिष्य थे। आपने भी उपाध्यायजो के पास विद्याध्यन किया था अतः अपने ग्रन्थ में विद्यागुरू रूप से उनकी प्रशंसा की है। आपके रचित ग्रंथ द्वय और एक स्तवन प्राप्त हैं--
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