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________________ ( ३७ ) अभाव होता । परन्तु उनका अभाव नहीं माना जा सकता। क्योंकि असत् का अस्तित्व और सत् का अभाव सिद्धान्तविरुद्ध है । अत: यदि जल आदि का सम्बन्ध बीज में असत् माना जायगा तो कभी उसका अस्तित्व नहीं होगा और और यदि सत् माना जायगा तो कभी उसका अभाव नहीं हो सकता । इस लिये जिस देश काल का बीज अङ्कुर का उत्पादन करता है उस देश-काल के बीज में सहकारियों का सन्निधान ही है एवं अन्य देश-काल के बीज में उनका असन्निधान ही है । सम्बन्ध और असम्बन्ध के विरोध का यदि यह अर्थ हो तो यह भी ठीक नहीं, क्योंकि न्याय और बौद्धमत में असत् कार्य की ही उत्पत्तिलक्षण सत्ता और उत्पन्न हुये सत्कार्य की ही निवृत्तिलक्षण असत्ता मानी जाती है । परस्पर-सम्बन्ध योग्य समानकालिक वस्तुओं का असम्बन्ध होना उचित नहीं है । यदि कुसूलस्थ बीज और जल आदि में परस्पर सम्बन्ध की योग्यता और एककालीनता मानी जायगी तो वे असम्बद्ध नहीं रह सकते । अतः कुसूलस्थ-बीज में जल आदि के असम्बन्ध को देखते हुये यह मानना आवश्यक है कि उसमें जल आदि के सम्बन्ध की योग्यता नहीं है । सम्बन्ध के लिये समानकालीनता के समान समानदेशता भी आवश्यक होती है । कुसूलस्थ बीज के सन्निहित स्थान में जल आदि नहीं हैं अतः बीज के साथ उनका असम्बन्ध है, यह नहीं कहा जा सकता। क्योंकि भाव और अभाव का कालिक विरोध है । इस लिये कुसूलस्थिति-दशा में जल आदि से असम्बद्ध बीज ही कालान्तर में जल आदि से सम्बद्ध होता है । यह न्यायशास्त्र की मान्यता मान्य नहीं हो सकती । सम्बन्ध और असम्बन्ध के विरोध वर्णन का यदि यह भाव हो तो यह भी ठीक नहीं। क्योंकि भाव का उसके प्रागभाव और ध्वंस के ही साथ कालिक विरोध है, अत्यन्ताभाव के साथ नहीं । क्योंकि भाव-काल में भी अत्यन्ताभाव देशान्तर में रहता है । अतः जल आदि के सत्ता - काल में भी कुसूलस्थ बीज के निकट स्थान में जल आदि का अत्यन्ताभाव होने के कारण कुसूल स्थिति-दशा में बीज में जल आदि का असम्बन्ध और क्षेत्रस्थिति-दशा में उसी बीज में जल आदि का सम्बन्ध हो सकता है। क्योंकि परस्पर सन्निधान योग्य वस्तुयें यदि एक काल में रहती हैं तो उनका परस्पर सन्निधान होता ही है । यह नियम नहीं है । जिस देश -स्थान में जो वस्तु रहती है उस देश-स्थान में उसका अभाव नहीं रहता । अतः एक बीज में जल आदि के सम्बन्ध और सम्बन्धाभाव Aho ! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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