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________________ ( २३ ) के प्रति बीजसामान्य को कारण न मानने पर अङ्कुरसामान्य की आकस्मिकता प्राप्त होती है अर्थात् अंकुरसामान्य की उत्पादक सामग्री का निश्चय न हो सकने से उसकी इच्छा से अनुकूलसामग्री के सम्पादन में मनुष्य की प्रवृत्ति अनुपपन्न होती है उसी प्रकार तत्तत् बीज आदि को ततत् अंकुर के प्रति कारण न मानने पर तत्तत् अंकुर की आकस्मिकता प्राप्त होगी । अर्थात् तत्तत् अंकुर की उत्पादक सामग्री का निश्चय न हो सकने से तत्तत् अंकुर की इच्छा से सामग्रीसम्पादन में मनुष्य की प्रवृत्ति अनुपपन्न होगी । इस बौद्धकथित आरोप का स्पष्टरूप यह है कि यदि अंकुरसामान्य के कारणों को ही तत्तत् अङ्कुर का भी उत्पादक माना जायगा तो एक अर अङ्कुर की उत्पत्ति जिस समय जिस स्थान में होती है उसी समय उसी स्थान में अन्य अङ्कुरों की भी उत्पत्ति न रोकी जा सकेगी। क्योंकि अङ्कुरसामान्य के कारण ही तत्तत् अङ्कुरों के भी उत्पादक हैं अतः जब एक अङ्कुर का जनन करने के लिये अङ्कुरसामान्य के कारण एकत्र होंगे तो उनसे अन्य अङ्कुरों का जनन कैसे रोका जा सकेगा । अतः यह मानना होगा कि अङ्कुरसामान्यके प्रति बीज आदि वस्तुयें सामान्य रूप से और तत्तत् अङ्कुर के प्रति तत्तत् बीज आदि वस्तुयें विशेषरूप से कारण हैं । इस विशेष कार्यकारणभावको स्वीकार करने पर यह प्रश्न स्वभावतः उठता है कि जिस अङ्कुर का जन्म जिन बीज आदि विशेष व्यक्तियों से होगा उन विशेष व्यक्तियों में ही उस अङ्कुर की कारणता का निश्चय अन्वयव्यतिरेक द्वारा होगा। फिर जो नवीन अङ्कुर उत्पादनीय है उसकी कारणता का निश्चय उसकी उत्पत्ति के पहले कैसे होगा ? अर्थात् किस बीज से किस अङ्कुर का जन्म होगा यह निश्चय कथमपि न हो सकेगा । और ऐसा निश्चय न हो सकने से नवीन विशेष अङ्कुर के उत्पादन की इच्छा से मनुष्य किसी विशेष बीज का उपयोग न कर सकेगा । फलतः नये अङ्कुरों का जनन निरुद्ध हो जायगा । और अङ्कुरसामान्य तत्तत् अङ्कुर की कथित आकस्मिकता के परिहार के लिये बौद्ध और स्थैर्यवादी को ऐकमत्य से यह कहना होगा कि विशेष से पृथक् सामान्य की सत्ता नहीं होती, अतः तत्तत् वीजसे पृथक् बीजसामान्य एवं तत्तत् अङ्कुर से पृथक् अङ्कुरसामान्य का अस्तित्व नहीं है और इसीलिये अङ्कुरसामान्य के प्रति बीजसामान्य को कारणता भी तत्तत् अङ्कुर के प्रति तत्तत् बीज की कारणता से भिन्न नहीं है । अर्थात् सामान्यरूप से विशेषकारणता का ही व्यवहार होता है । भेद इतना ही है कि जब तत्तत् बोज की कारणता का व्यवहार बीजसामान्य की कारणता के रूप में होता है तब उस Aho ! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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